ऐतेकाफ रमजानुल मुबारक की अहम इबादत : ओसैद
इंसान जो भी करे अल्लाह के लिए करे दरभंगा/अलीनगर : रमजानुल मुबारक का आखरी अशरा शुरू हो गया है. इस अशरा में इबादत व सवाब की नियत से खुद को मसनून ऐतेकाफ के लिए मस्जिद में रुकना बेहतर करार दिया गया है कि. ये बातें पूरा गांव के मौलाना ओसैद कासमी ने कही. उन्होंने कहा […]
इंसान जो भी करे अल्लाह के लिए करे
दरभंगा/अलीनगर : रमजानुल मुबारक का आखरी अशरा शुरू हो गया है. इस अशरा में इबादत व सवाब की नियत से खुद को मसनून ऐतेकाफ के लिए मस्जिद में रुकना बेहतर करार दिया गया है कि. ये बातें पूरा गांव के मौलाना ओसैद कासमी ने कही. उन्होंने कहा कि यूं तो सारे साल दिल व दिमाग दुनिया के भौतिक विषयों में इस कदर फंसा रहता है कि चंद लम्हे भी एकाग्रता के साथ इबादत करना नसीब नहीं होता. ऐतेकाफ के चंद रोज उन लोगों के लिए किसी बड़ी नेमत से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐतेकाफ के अनगिनत फायदे हैं.
अल्लाह को राजी करने वाले और उससे मोहब्बत पैदा करने का बेहतरीन वसीला है.
इसकी वजह से अल्लाह ताला के साथ बेहतरीन निकटता हासिल होता है और तनहाई में अल्लाह से मुनाजात का सही मौका मिलता है. यह गुनाह माफ होने का बेहतरीन माध्यम है. ऐतेकाफ करने वाला बहुत से गुनाहों से सुरक्षित रह जाता है. उन्होंने कहा कि हमारे सल्फ सालेहीन ऐतेकाफ की सुन्नत पर पाबंदी के साथ अमल किया करते थे. इसका आप अगर शोहरत और नामवरी के लिए करें तो उससे बेहतर ना करना है. कारण इबादत में रेयाकारी का कोई स्थान नहीं है. आदमी जो काम भी करे अल्लाह के लिए करे और उसकी नीयत पर सवाब का हुसूल हो. इसके अलावा कुछ ना हो. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हर आबादी अर्थात शहर से लेकर गांव और मोहल्ला में स्थित मस्जिदों में कम से कम एक आदमी ऐतेकाफ में जरूर बैठें, नहीं तो पूरी आबादी गुनहगार होगी.