सब्जी उत्पादकों पर आसमान से बरसी आफत, 20 लाख की फसल चौपट

सदर : क्षेत्र में लगातार हो रही आंधी-बारिश एवं ओलावृष्टि ने सब्जी उत्पादक किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है. 20 लाख से अधिक की फसल बर्बाद हो गयी. फोरलेन से उत्तर का इलाका सब्जी बहुल किसानों का क्षेत्र है. खासकर वासुदेवपुर, शीशो पूर्वी एवं शीशो पश्चिमी पंचायत के अधिकांश जगहों में विभिन्न प्रकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2019 1:20 AM

सदर : क्षेत्र में लगातार हो रही आंधी-बारिश एवं ओलावृष्टि ने सब्जी उत्पादक किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है. 20 लाख से अधिक की फसल बर्बाद हो गयी. फोरलेन से उत्तर का इलाका सब्जी बहुल किसानों का क्षेत्र है. खासकर वासुदेवपुर, शीशो पूर्वी एवं शीशो पश्चिमी पंचायत के अधिकांश जगहों में विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगायी जाती है.

यहां के मौलागंज के इलाके में व्यापक स्तर पर हरी सब्जियों की खेती की जाती है. गांव के दर्जनों किसानों ने पचास एकड़ से अधिक जमीन में हरी सब्जी लगायी थी, लेकिन लगातार आंधी-बारिश एवं ओलावृष्टि ने सब लील गया. खेत में लगे कद्दू, खीरा, टमाटर, भिंडी, घियूरा सब नष्ट हो गये हैं. किसानों का करोड़ों रुपये की बर्बादी का आकलन किया गया है. इसकी भरपाई कैसे और कहां से होगी, इसी चिंता में डूबे हैं.
डूब गयी लाखों की पूंजी
किसान कपिलदेव प्रसाद ने सात बीघा खेत में अनेक तरह की हरी सब्जी की खेती की थी. इसमें तीन लाख की लागत आयी थी. कपिलदेव का कहना है कि अब तो सब खत्म हो गया. परिवार कैसे चलेगा इसी चिंता में डूबे हैं. दिनेश कुशवाहा तो फसल लगाने के लिए खेत की जुताई से लेकर बीज, मजदूरी, पटवन, दवा आदि में पांच लाख खर्च कर चुके थे. सालभर इसी की कमाई से बाल-बच्चे की पढाई-लिखाई आदि चलता था.
दिनेश का कहना है कि परिवार चलाना तो दूर, पूंजी की भरपाई कैसे होगी. राजेश महतो ने पहली बार दो लाख की पूंजी से सब्जी खेती कर अपना भाग्य आजमाये थे. उनका कहना है कि अब फिर से दोबारा खेती कैसे होगी. पहली बार की पूंजी तो डूब चुकी है, ऊपर से कहां से फिर पूंजी जुटा पायेंगे. इसी तरह खुबलाल महतो, राजेंद्र महतो, राजकुमार महतो, दिलीप महतो, होरिल महतो, राजेश महतो, राजू महतो, उर्मिला देवी, किशन कुमार एवं रामदेव महतो ने भी एक से चार लाख तक की पूंजी लगा चुके थे, लेकिन इस आपदे में सब बर्बाद हो गया. वहीं कई ऐसे भी किसान हैं जो पूंजी के अभाव में 25-50 हजार रूपये की लागत लगाकर खेती की थी. अब तो सब बेकार साबित हो गया.

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