फूहड़ गीतों ने भुलाया जोगीरा ….

गांवों में अब नहीं बजते डंफा बेनीपुर . आधुनिकता के इस दौर में एक-एक कर दरक रही परंपरा की दीवारों का असर अब सीधे तौर पर उल्लास एवं उमंग के पर्व होली पर भी ग्रामीण अंचलों में दिख रही है. पहले जहां वसंत पंचमी के बाद से ही डंफे की थाप पर होली एवं जोगीरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 28, 2015 10:03 PM

गांवों में अब नहीं बजते डंफा बेनीपुर . आधुनिकता के इस दौर में एक-एक कर दरक रही परंपरा की दीवारों का असर अब सीधे तौर पर उल्लास एवं उमंग के पर्व होली पर भी ग्रामीण अंचलों में दिख रही है. पहले जहां वसंत पंचमी के बाद से ही डंफे की थाप पर होली एवं जोगीरा सा..रा..रा..रा से पूरे ग्रामीण क्षेत्र गंुजायमान रहता था. अब तो हालात यह हो गयी है कि डीजे साउंड पर फूहड़ भाजपुरी और मैथिली गीतों पर थिरकने वाली नयी पीढ़ी के लिए अब ढोलक और डंफा शब्द भी अनजान से हो गये हैं. अब न गांवों में कहीं होली के पूर्व से ही दरवाजों पर होली की टोली सजती है, न भांग घोला जाता है और न जोगीरा सा….रा…रा का स्वर सुनाई पड़ता है. इसको लेकर क्षेत्र मे बूढ़े बुजुर्गों को अब अपनी धरती भी वीरानी सी लगने लगी है. कंथूडीह के बुजुर्ग रामदेव झा उस जमाने को याद करते हीु कहते हैं कि अब तो समाजिकता की वह भावना ही कहीं नहीं दिखती. हमारे समय में वसंत पंचमी के बाद से ही जैसे पूरा गांव एक परिवार हो जाया करता था. प्रतिदिन किसी न किसी दरवाजे पर पूरे गांव के लोग एकत्रित हो रंग-अबीर के साथ डंफे की थाप एवं भंग के उमंग में मदमस्त हो जाया करते थे. किसी छोटे-बड़े का भेदभाव समाप्त हो जाया करता था.

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