कैंपस.. गीता का सर्वप्रधान विषय है कर्मवाद
रमेश्वरलता संस्कृत विवि में सेमिनार का हुआ समापनगीता की उपयोगिता पर वक्ताओं ने डाला विस्तृत प्रकाशफोटो संख्या- 11 व 12परिचय- मंचस्थ अतिथि व उपस्थित प्रतिभागी दरभंगा . स्थानीय रामेश्वर लता संस्कृत महाविद्यालय में यूजीसी संपोषित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी का गुरुवार को समापन हो गया. संगोष्ठी के दूसरे दिन वक्ताओं ने गीता की उपयोगिता पर […]
रमेश्वरलता संस्कृत विवि में सेमिनार का हुआ समापनगीता की उपयोगिता पर वक्ताओं ने डाला विस्तृत प्रकाशफोटो संख्या- 11 व 12परिचय- मंचस्थ अतिथि व उपस्थित प्रतिभागी दरभंगा . स्थानीय रामेश्वर लता संस्कृत महाविद्यालय में यूजीसी संपोषित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी का गुरुवार को समापन हो गया. संगोष्ठी के दूसरे दिन वक्ताओं ने गीता की उपयोगिता पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचार्य डॉ कमलेश झा ने राम मनोहर लोहिया के जीवन पर भागवत गीता के प्रभावों की व्याख्या की. साथ ही विभिन्न तर्कों एवं उद्धरणों के माध्यम से उन्होंने श्रुति के महत्व को प्रतिपादित किया. उन्होंने कहा कि मानव जीवन के कल्याण के लिए ही किसी धर्म का उद्भव होता है. डॉ वाचस्पति शर्मा त्रिपाठी ने अपने संबोधन में गीता में प्रतिबिंबित साम्यवाद की व्याख्या की. इस क्रम में प्रो बौआनंद झा, डॉ उदयकांत मिश्र, आदि ने भी अपने विचार रखे. अपने अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विवि के पूर्व कुलपति प्रो उपेंद्र झा ने श्रीमद् भगवत गीता में वैदिक ज्ञान-विज्ञान एवं कर्मवाद पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि कर्मवाद गीता का सर्वप्रधान विषय है, जो राष्ट्र के लिए सर्वथा उपादेय व महत्वपूर्ण है. इससे पूर्व प्रसिद्ध कर्मकाण्डी धनेश्वर झा के मंगलाचरण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसका संचालन डॉ विमलनारायण ठाकुर ने किया. धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विवि के कुलसचिव डॉ मनोरंजन कुमार दूबे ने प्रस्तुत किया. संगोष्ठी की संयोजिका डॉ ममता पांडेय ने बताया कि विषय संबंधित आलेखों का प्रकाशन शीघ्र ही किया जायेगा. प्रधानाचार्य डा. दिनेश्वर यादव ने संगोष्ठी के समापन के अवसर पर महाविद्यालय के शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मियों के प्रति आभार व्यक्त किया.