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आंखों के सामने भरभराकर गिर पड़ी पुरानी बिल्डिंग

दरभंगा : सामने मौत थी, सब कुछ छोड़ लोग घर से बाहर भागे, धरती जब कांपी तो मुख्य द्वार अपने आप खुल गया. हमारे सामने वाला पुराना घर चंद लमहों में जमींदोज हो गया. जिसे देख हम सबों के होश फाख्ता हो गये. मेरी छोटी बहन की थरथराहट और स्थिति देख हमारा डर काफूर हो […]

दरभंगा : सामने मौत थी, सब कुछ छोड़ लोग घर से बाहर भागे, धरती जब कांपी तो मुख्य द्वार अपने आप खुल गया. हमारे सामने वाला पुराना घर चंद लमहों में जमींदोज हो गया. जिसे देख हम सबों के होश फाख्ता हो गये. मेरी छोटी बहन की थरथराहट और स्थिति देख हमारा डर काफूर हो गया.
उसे घसीटकर हम तीनों ने घर से बाहर निकाला. जब हम मुख्य द्वार तक पहुंचते तब ही पास खड़ी बाइक मेरे भाई के पैर पर गिर पड़ा. उसे उठाकर हम सबों ने खुले में शरण ली. यह मंजर बयां करते ममता कांति के आंखों में खौफ साफ दिख रहा था.
नेपाल की राजधानी काठमांडू एयरपोर्ट के समीप जड़ी-बुटी नारेफाट इलाके में मेडिकल की तैयारी कर रही ममता कांति ने भूकंप की स्थिति बयां की. स्थानीय अललपट्टी के इंदिरा कॉलोनी में किराये पर रह रहे पारस कांति की पुत्री ममता काठमांडू में अपने फुफेरे भाई नंद किशोर कामति, किशन साह और पूजा साह के किराये के मकान में साथ रहकर पढ़ाई कर रही है.
25 अप्रैल को आये प्रलंयकारी भूकंप की बाबत पूछने पर ममता ने बताया कि उस वक्त नेपाली घड़ी 11.56 बजा रही थी. वह अपने भाई-बहनों के साथ लैपटॉप पर मूवी देख रही थी कि चौकी हिलने लगा. उसे लगा कि किसी भाई या बहन ने मजाक किया है. लेकिन तुरंत बाद चौकी जोर-जोर से हिलने लगा. टेबुल पर बैठी बहन गिर पड़ी.
तब चारों ओर से आवाज गूंजनी लगी भागो भूकंप, भाग. भागो भूकंप आया. वह उठी और दरवाजे की ओर भागी. दरवाजा अपने-आप खुल गया. उसके पीछे दोनों भाई थे, लेकिन पूजा कमरे में रह गयी. वह बदहवाश थी, उसकी आवाज गायब भी, डर से समूचा बदन कांप रहा था. सबने मिलकर उसे घसीटते हुए घर से बाहर निकाला. जब सब दो मंजलि इमारत से बाहर भागे तो सामने का एक पुराना मकान भरभराकर गिर पड़ा. इसे देख बच्चे और घबरा गये. भागने के क्रम में दरवाजा के पास रखी बाइक नंदू के पैर पर गिर पड़ी. फिर भी कोई नहीं रूका. भागकर मैदान में आ अये और जान बचायी.
कोई टॉवल लपेटे, तो कोई साबुन लगाये ही भागा
जब बाहर सब भागे तक की स्थिति अजीब थी. कोई साबून लगे ही भागा तो कोई टॉवल लपेटे हुआ था. किसी के हाथ में आंटा लगा था तो किसी के मुंह में खाना लगा थ. करीब दो घंटे तक रूक-रूक कर उस दिन 20 से अधिक झटके आये. घर मालिक ने खुले में टेंट लगाकर सबों के साथ खुद भी तीन रात बितायी. मोबाइल का नेटवर्क दो घंटे बाद दुरुस्त हुआ तब घर पर बात हुई तो बताया कि मैं ठीक हूं.
दो दिन बाद पापा पहुंचे, तो आयी नींद
इस घटना के बाद नेटवर्क भंग हो गया और संपर्क टूट गया. देर शाम पापा से बात हुई तो पापा ने बताया कि धरहरा टावर ध्वस्त हो गया. सैंकड़ों मर गये. नीचे टॉट मोमोज की दुकान थी, जहां सैंकड़ों लोग इकट्क्ष था. वहीं धरहरा टावर का मलबा गिरा. भूकंप वाले दिन पूरे दिन बिजली नहीं रही.
रूक-रूक कर हो रही बारिश ने खुले में जीवन काट रहे लोगों का जीना और मुश्किल हो गया. फोन पर बात के बा पापा 48 घंटे बाद मुझसे मिलने पहुंचे, तब तक खाना-पीना का इंतजाम सामूहिक रूप से होता रहा. कोई चावल बनाता तथा भूजिया. कोई दाल तो कोई सब्जी, सभी दुकानें बंद थी. जैसे-तैसे कुछ खा-पीकर गुजारा किया. पापा पहुंचे तो पूरी नींद सोयी और इच्छा भर खाना खाया.
सभी दवाइयां गिर रही थीं
भूकंप के वक्त मैं सिरहा के मिरचईया बाजार के निकट की दुकान से दवा खरीद रहा था. जब मैंने दुकान के रैक से दवाई को गिरते देख तो कुदकर सड़क पर आ गया. तब तक समूची दुकान ही धराशायी हो गयी. सड़कें जग-जगह फट गयी, धंस गयी.

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