/रफोटो-13 व 14परिचय- कथा वाचन करते महाराज चैतन्य व उपस्थित श्रद्धालु भक्तगण.सदर, दरभंगा : भक्ति का उच्चतम शिखर वैराग्य है. सांसारिकता के माया जाल में लिप्त मनुष्य जब भागवत आराधना से उच्च स्थिति की ओर बढ़ता है तब उसके मन में वैराग्य भाव प्रकट होता है. सांसारिकता को छोड़ सर्वोत्तम समर्पण का भाव ही वैराग्य कहलाता है. शनिवार को रुहेलागंज स्थित सर्वेश्वर नाथ मंदिर परिसर में भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास प्रमोद चैतन्य ने उक्त बातें कही. उन्होंने इस प्रसंग मंे कहा कि जन्म के साथ ही सुखदेव के मन मेें वैराग्य भाव प्रकट हो गया और वे जंगल की ओर विदा हो गये. सांसारिकता, वेश, माया मोह से अपने जीवन को मुक्त रखना चाहते थे. इसलिए वे वन की ओर प्रस्थान कर गये. लेकिन उनके पिता व्यास को उनका यह निर्णय रास नहीं आया. वे सुखदेव को समझाने की अथक प्रयास किये लेकिन अंतत: सुखदेव अपने पिता व्यास को इस सांसारिकता की माया तथा इसका परिणाम इस दोनों स्थितियों से अवगत कराने में सफल हुए. श्री चैतन्य ने कथा वाचन के समय बताया कि भक्तों में सर्वश्रेष्ठ भक्त सर्वात्म समर्पण से भक्ति करनेवाले को ही बताया गया है. मौके पर स्थानीय मुहल्ला के पप्पू साह, ज्ञान सरिता स्कूल के प्राचार्य अमरनाथ साह, कॉमर्स प्वाइंट के निदेशक संतोष कुमार साह के साथ प्रो. बनारसी यादव, इंजीनियर सुरेश प्रसाद यादव, संकल्पकर्त्ता विश्वनाथ साह, रामदयाल साह आदि सहित कई श्रोता मौजूद थे.
भक्ति का उच्चतम शिखर है वैराग्य
/रफोटो-13 व 14परिचय- कथा वाचन करते महाराज चैतन्य व उपस्थित श्रद्धालु भक्तगण.सदर, दरभंगा : भक्ति का उच्चतम शिखर वैराग्य है. सांसारिकता के माया जाल में लिप्त मनुष्य जब भागवत आराधना से उच्च स्थिति की ओर बढ़ता है तब उसके मन में वैराग्य भाव प्रकट होता है. सांसारिकता को छोड़ सर्वोत्तम समर्पण का भाव ही वैराग्य […]
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