वाह! नील गगन से अमृत बरसा

दरभंगा : एक दिन पहले की तो बात है. उमस भरी गर्मी से जीना मुहाल था. हर किसी के माथे से पसीना टपक रहा था. शरीर जल रहा था. बगैर पंखे के लोगों का रहना मुश्किल हो रहा था. किसान परेशान थे. उनके चेहरे की खुशी गायब थी. कारण खेतों में लगे धान के पौधे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2015 12:37 AM
दरभंगा : एक दिन पहले की तो बात है. उमस भरी गर्मी से जीना मुहाल था. हर किसी के माथे से पसीना टपक रहा था. शरीर जल रहा था. बगैर पंखे के लोगों का रहना मुश्किल हो रहा था.
किसान परेशान थे. उनके चेहरे की खुशी गायब थी. कारण खेतों में लगे धान के पौधे पीले पड़ने लगे थे. खेतों में दरारें आ गयी थी. पशु पक्षियों को अपना गला तर करने के लिए भटकना पड़ता था. शहर के अधिकांश चापाकलों ने पानी देना बंद कर दिया था. मोटर से भी दो से तीन मंजिल तक पानी पहुंचना मुश्किल हो गया था. सब परेशान थे. पर आज, सबों के चेहरे पर चमक है.
यह चमक बुधवार की रात से आयी. जब सावन झूम के बरसा. जमकर बरसा. इतना बरसा की शहर के सड़कों पर पानी लग गये. घुटने भर. सूख चुके चापाकल ने भी पानी देना शुरू कर दिया.
दफ्तरों में पानी घुस गये. घरों में भी पानी घुस गये. लोगों को अपने घरों में भी चौकी पर चौकी डालकर ऊपर रहने को विवश होना पड़ रहा है. भले ही बारिश से दो तीन दिन के लिए परेशानी बढ़ गयी हो. उनकी मुसीबतें बढ़ गयी हो. पर उनके चेहरे झमाझम बारिश से खिल उठे हैं. खेतों की दरारें समाप्त हो गयी है.
पीले पड़े धान के पौधे झमाझम बारिश से नहाकर खिलने लगे हैं. उसमें भी हरियाली आने लगी है. किसानों की बांछें भी खिल उठी. सूख रहे फसलों की चिंता से मुक्ति मिल गयी है. नदी नाले में भी पानी से भर गये है. मेढ़क की टर्र टर्र की आवाज लंबे अरसे के बाद सुनाई पड़ने लगी है. नदी तालाब भर गये हैं. मिथिला की पहचान माछ, मखान व पान को लेकर है.
सूख रहे ताल तलैया, नदी नाले से मछली के उत्पादन पर असर साफ दिख रहा था. पर अब झमाझम बारिश ने मत्स्यपालकों के साथ साथ मछली के शौकीन लोगों की उम्मीदों को पूरा कर दिया है. पेड़ पौधों में भी जान आ गयी है. पशु पक्षी भी चहकने लगे है. उन्हें अब अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं ढूंढना होगा.यानि सभी के मुख से एक ही शब्द फूट रहे हैं, वाह भाई, वाह!नील गगन से अमृत बरसा.

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