किसी का बेटा बना चुनावी सारथी तो कहीं पत्नी संभाल रही कमान

किसी का बेटा बना चुनावी सारथी तो कहीं पत्नी संभाल रही कमान चुनावी नैया पार लगाने में जुटे हैं अपने प्रतिनिधि, दरभंगा. इस चुनाव में कई तरह के नये प्रयोग किये जा रहे हैं. किसी विधानसभा क्षेत्र में प्रचार-प्रसार व चुनावी तैयारियों की बागडोर पिता के हाथों में है तो कहीं बेटा ही बाप के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 6:49 PM

किसी का बेटा बना चुनावी सारथी तो कहीं पत्नी संभाल रही कमान चुनावी नैया पार लगाने में जुटे हैं अपने प्रतिनिधि, दरभंगा. इस चुनाव में कई तरह के नये प्रयोग किये जा रहे हैं. किसी विधानसभा क्षेत्र में प्रचार-प्रसार व चुनावी तैयारियों की बागडोर पिता के हाथों में है तो कहीं बेटा ही बाप के चुनावी सफर का सारथी बना है. किसी क्षेत्र में तो महिला प्रत्याशी के पति देव ने बागडोर संभाल रखा है, तो कहीं अपनी पत्नी के बूते अपना चुनावी सफर तय करने में जुटे हैं. इन बदले परिवेश में प्रत्याशियों के काम-काज का तरीका भी हाइटेक हो गया. चकाचक चुनावी कार्यालय में कार्यकर्ताओं के हर सुविधा का ख्याल रखा जा रहा है. मसलन उनके बैठने का इंतजाम, नाश्ता-पानी, क्षेत्र भ्रमण के लिए वाहन की उपलब्धता और इंधन, झंडा-पोस्टर, बैनर के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को किये गये प्रचार का सबूत पेश करना होगा. मोबाइल पर तसवीर खींचकर प्रत्याशी को पूरे दिन का ब्योरा समर्पित करना है. प्रत्याशी के प्रचार तरीकों में बदलाव है, अब वह मतदाताओं से प्रत्यक्ष रू-ब-रू होने में दिलचस्पी ले रहे हैं. खर्चे का हिसाब को रखे ट्रेंड एकाउंटेंट भाई जब सब हाइटेक हुआ तो चुनावी कार्यालय में कंप्यूटर अनिवार्य कर दिया है. एकाउंट का काम-काज देखने के लिए ट्रेंड एकाउंटेंट के इंतजाम हैं. कार्यालय के काम-काज के लिए अलग से व्यक्ति की तैनाती है. प्रत्याशियों के अलावा चुनावी अभियान से जुड़े कार्यकर्ता अपनी सारी जानकारी तयशुदा व्यक्ति को दे रहे हैं. देर रात तक हो रही समीक्षा तयशुदा कार्यक्रम के अलावा क्षेत्र की हर गतिविधियों पर प्रत्याशी की पैनी निगाह है. चुनावी तैयारियों को लेकर परंपरागत कार्यकर्ता के साथ खास ट्रेंड हैंड को चुनाव के प्रचार, जनसंपर्क, आमलोगों की परेशानी, बूथों की मैनेजिंग इत्यादि पर व्यापक समीक्षा प्रतिदिन हो रही है. समस्याओं के निदान को निर्देश दिये जा रहे और मैनेज करने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं. अमूमन रात्रि 10 बजे से 11 बजे तक प्रत्याशी क्षेत्र से वापस घर अथवा अपने चुनावी कार्यालय पहुंचकर घंटे-डेढ़ घंटे तक समीक्षा कर अगले दिन की रणनीति बना रहे.पत्नी को भी सिखा रहे दावं-पेच विधायकी की दौड़ में शामिल प्रत्याशी पत्नी को महिला वोटरों को समझाने-बुझाने के लिए भेज रहे हैं. प्रत्याशी अपनी अर्द्धांगिनी को राजनीति के दावं-पेच बता रहे हैं. निवर्तमान विधायक क्षेत्र में आक्रोशित जनता को समझाने बुझाने के लिए महिला विंग का सहारा ले रहे हैं. जरूरत पड़ने पर जनता से माफी मांगकर उनकी पत्नियां गलती ठीक कर लेने का वादा कर लेती हैं. फिर काफिला आगे बढ़ता है. खाने को पुरी-जलेबी, पीने को मिनरल वाटर थक-हारकर क्षेत्र से लौटे कार्यकर्ताओं को चुनावी कार्यालय में पुरी-जलेबी खिलायी जा रही है. सुबह सबेरे चुरा-दही का भी भोज चलता है. दिन के खाने तो ठीक नहीं सो रात्रि भोजन और विश्राम के लिए टाइल्स-मार्बल युक्त कमरे, पलंग-चौकी, रोशनी, पंखे की व्यवस्था भी की गयी है. कार्यकर्ताओं के लिए मिनरल वाटर के इंतजाम है. ‘हाइटेक कार्यालय’ के रूप में पहली पंसद बड़े होटल प्रत्याशियों के कार्यालय के रूप में पहली पसंद बड़े व महंगे होटल है. इनका किराया प्रतिदिन 1000 से लेकर 3000 रुपये तक है. नेताजी एसी में रहना पसंद करते हैं तो कहीं प्रत्याशियों के क्षेत्र के ही अपडेट भवन को चुनावी कार्यालय के रूप में एक माह के लिए ले लिया है. यहां भी सारी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखा गया है. एक दल के प्रवासी प्रत्याशी ने तो शहर के महंगे होटल के कमरे और हॉल को एक माह के लिए बुक कर लिया है. यहां सुबह से लेकर देर रात तक चुनावी गतिविधियां तेज रहती है.

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