कोई आठ तो कोई नौ को मान रहा संध्याकालीन अर्घ
दरभंगाः लोक आस्था का महापर्व छठ की तिथि को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है. कुछ लोग जहां 8 नवंबर को संध्याकालीन अघ्र्यदान का मुहुर्त्त बता रहे हैं तो कुछ लोगों का मत है कि 9 नवंबर को संध्याकालीन अघ्र्यदान होना चाहिए. इस तिथि को लेकर अलग-अलग पंचांगों में भी मतभिन्नता है. संस्कृत विवि […]
दरभंगाः लोक आस्था का महापर्व छठ की तिथि को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है. कुछ लोग जहां 8 नवंबर को संध्याकालीन अघ्र्यदान का मुहुर्त्त बता रहे हैं तो कुछ लोगों का मत है कि 9 नवंबर को संध्याकालीन अघ्र्यदान होना चाहिए. इस तिथि को लेकर अलग-अलग पंचांगों में भी मतभिन्नता है. संस्कृत विवि की ओर से प्रकाशित होने वाला विश्वविद्यालय पंचांग में 8 नवंबर की तिथि ही अंकित है.
उल्लेखनीय है कि कार्तिक शुल्क षष्ठी को संध्याकालीन अघ्र्यदान की परंपरा है. वहीं सप्तमी को प्रात:कालीन सूर्य को अघ्र्य अर्पित किया जाता है. इस वर्ष सप्तमी तिथि का लोप है. इस वजह से ही यह असमंजस या विरोधाभास हो रहा है.
विवि पंचांग के संपादक सह संस्कृत विवि के कुलपति पंडित रामचंद्र झा कहते है कि 9 नवंबर को षष्ठी तिथि कुछ पल के लिए है. सूर्योदय के तुरंत बाद षष्ठी समाप्त हो जाता है. श्री झा कहते हैं कि विधान के मुताबिक जितना दंड तिथि रहना चाहिए उतना नहीं है, इसलिए 8 नवंबर को ही व्रत होगा. दूसरी ओर लब्धप्रतिष्ठ ज्योतिषी पंडित कालीकांत मिश्र कहते हैं कि जब-जब सप्तमी तिथि का क्षय होता है, तब-तब इस तरह की असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है. हालांकि वे भी कहते हैं कि मूर्धन्य विद्वानों के मतानुसार 8-9 को ही छठ होना चाहिए.
दूसरी ओर दूसरे पक्ष का मत है कि पंचमी और षष्ठी तिथि एक दिन पड़ने पर षष्ठी व्रत निषिद्ध माना गया है. शास्त्र में इसे निषेध किया गया है. सूर्योदय के समय एक पल के लिए भी षष्ठी तिथि जिस दिन हो, उस दिन ही व्रत होना चाहिए.
इन विरोधाभासों को लेकर लोगों में तरह-तरह की चर्चा हो रही है. हालांकि मिथिला में मानक के रूप में स्थापित विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार इस महापर्व के अनुष्ठान का आरंभ 6 नवंबर को ही नहाय-खाय से ही हो जाएगा.