ऐतिहासिक हाट की लौटी रौनक

अलीनगर : छठ पर्व के पहले स्थानीय ऐतिहासिक हाट की अंतिम हटिया की रौनक रविवार को अचानक लौट आयी. भीड़-भाड़ और उसमें भी महिलाओं की बहुलता देख सभी आश्चर्यचकित थे. बता दें कि यह राजस्व हाट बूढ़े बुजुर्गों के अनुसार करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना है. जहां दूर दराज से व्यापारी से लेकर खरीदार पहुंचा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2015 6:59 PM

अलीनगर : छठ पर्व के पहले स्थानीय ऐतिहासिक हाट की अंतिम हटिया की रौनक रविवार को अचानक लौट आयी. भीड़-भाड़ और उसमें भी महिलाओं की बहुलता देख सभी आश्चर्यचकित थे. बता दें कि यह राजस्व हाट बूढ़े बुजुर्गों के अनुसार करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना है. जहां दूर दराज से व्यापारी से लेकर खरीदार पहुंचा करते थे.

जिसके कारण हाट के पांच एकड़ भूखंड के अलावा सभी सड़कों और पड़ती पड़ी खेतों में काफी भीड़ एकत्रित होती थी. जो क्षेत्र के विभिन्न गांवों में हटिया लगने और स्थानीय बाजार के अस्तित्व में आने से काफी सिमट गया. हटिया मेंं ओखल, मूसल, हल, हरिष, लगना, पालो इत्यादि बिकना तो बंद ही हो गया.

मिट्टी के बर्त्तन की बिक्री भी नाममात्र रह गयी. मवेशी हाट तो प्राय: समाप्त ही हो गया. सप्ताह में दो दिन रविवार एवं बुधवार को हाट लगने की अब मात्र खानापूरी ही हो रही है. सबसे अधिक सब्जी की दुकान जरूर लगती है. छठ पर्व को लेकर हाट में पूजा में उपयोग होनेवाला सबकुछ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था.

शक्कर, हल्दी, सुथनी, लौकी, फल, खाजा, लड्डू, सूप, छिट्टा, गन्ना, पात की तो कई दुकाने थीं, लेकिन सुधीर कुमार दास का कहना है कि जड़ी-बूटी बेचने के साथ साथ छठ के मौके पर आरत का पात बेचना उनका खानदानी पेशा है. करीब 100 वर्षों से यह पेशा उनके खानदान के लोग करते आ रहे हैं. कई महिलाओं ने कहा कि अर्घ देने में इसकी जरूरत होती है और इन्हीं के यहां से यह खरीदती आ रही हैं.

Next Article

Exit mobile version