अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पण आज
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पण आज प्रात:कालीन अर्घदान के साथ कल संपन्न होगा लोक आस्था का महापर्व फोटो संख्या- 15परिचय-चकाचक हुआ हराही तालाब घाट फोटोसंख्या- 16परिचय-राज परिसर में मनोकामना मंदिर के समीप बनकर तैयार घाट फोटो संख्या- 18परिचय- सूप रखने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा की गयी वैकल्पिक व्यवस्था दरभंगा : लोक आस्था का महापर्व छठ […]
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पण आज प्रात:कालीन अर्घदान के साथ कल संपन्न होगा लोक आस्था का महापर्व फोटो संख्या- 15परिचय-चकाचक हुआ हराही तालाब घाट फोटोसंख्या- 16परिचय-राज परिसर में मनोकामना मंदिर के समीप बनकर तैयार घाट फोटो संख्या- 18परिचय- सूप रखने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा की गयी वैकल्पिक व्यवस्था दरभंगा : लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था छलक रही है. घर के आंगन से लेकर बाजार की सड़कों तक यह पर्व पसरा हुआ है. चार दिनी इस महापर्व में भक्तगण 17 नवंबर को जहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पित करेंगे, वहीं 18 नवंबर की सुबह अर्घदान के साथ इस पर्व का समापन होगा. इसकी तैयारी अंतिम चरण में है. बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक तथा पुरुष से लेकर महिलाएं इसकी तैयारी में जुटी है. कोई घाट बना रहा है तो कोई पूजन सामग्री की खरीदारी में व्यस्त है. इस महापर्व को लेकर आलम यह बन गया है कि आमजन से लेकर प्रशासन तक की जुबान पर बस इसी पर्व का नाम है. प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव की आराधना का प्रतीक पर्व छठ मिथिला क्षेत्र में उल्लास के साथ मनाया जाता है. प्राय: सभी श्रद्धालु परिवार में यह पर्व मनाया जाता है. लिहाजा इसको लेकर वातावरण पूरी तरह भक्तिरस से सराबोर हो गया है. सोमवार को घर के सभी सदस्य इसी की तैयारी में जुटे नजर आये.घर के आंगन से लेकर बाजार की सड़कों तक छठ पर्व की धूम मची रही. व्रती के साथ अन्य महिलाएं जहां खरना का प्रसाद तैयार करने में लगी रही, वहीं पूजन सामग्री की खरीदारी में लोग लगे नजर आये. जाहिर है बाजार में रेला सा उमड़ पड़ा. नहाय-खाय से आरंभ इस महापर्व में खरना के अगले दिन 24 घंटे तक व्रती निर्जला उपवास रखेंगे. पूरे दिन व्रत रखने के बाद संध्याकाल पवित्र जल में ठाढ़ी देंगे. वहीं सुबह में ठाढ़ी के पश्चात अर्घदान के साथ इस महापर्व का विधिवत समापन हो जायेगा. प्रशासन घाटों की साफ-सफाई को अंतिम रूप देने में शाम तक लगा रहा तो श्रद्धालु अपना जगह सुनिश्चित कर उसकी लीपाई-पोताई में पसीना बहाते रहे. यही कारण है कि वर्षभर जिन घाटों के किनारे से गुजरने पर सांस लेना कठिन महसूस होता है, उन घाटों का दृश्य बड़ा ही मनोरम नजर आने लगा है.