अच्छी आय का बेहतर माध्यम है सामुदायिक खेती

अच्छी आय का बेहतर माध्यम है सामुदायिक खेतीफोटो ::::22, परिचय : प्रो. साकेत कुशवाहा कम लागत में किसान प्राप्त कर सकते हैं अच्छी आय लनामिवि के कुलपति सह बीएचयू कृषि अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर प्रो साकेत कुशवाहा ने कृषि प्रबंधन पर दिया जोर दरभंगा . खेतीबारी में किसान अपनी सारी उर्जा लगा देते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2015 6:52 PM

अच्छी आय का बेहतर माध्यम है सामुदायिक खेतीफोटो ::::22, परिचय : प्रो. साकेत कुशवाहा कम लागत में किसान प्राप्त कर सकते हैं अच्छी आय लनामिवि के कुलपति सह बीएचयू कृषि अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर प्रो साकेत कुशवाहा ने कृषि प्रबंधन पर दिया जोर दरभंगा . खेतीबारी में किसान अपनी सारी उर्जा लगा देते हैं. खेत की जुताई से लेकर फसलों के विपणन तक में किसानों का सर्वाधिक खर्च हो जाता है. यही वजह है कि हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें अच्छी आय हासिल नहीं हो पाती. इससे किसानों की बदहाली पहले की तरह बनी रह जाती है. अच्छी आय के लिए जरुरी है कि किसान सामुदायिक खेती करें. सामुदायिक खेती को सरकार एवं कृषि विभाग भी बढ़ावा दे रही है. हमें उसका फायदा उठाना चाहिए. यह कहना है ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति सह बीएचयू कृषि अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर प्रो साकेत कुशवाहा का. प्रभात खबर से विशेष बातचीत में प्रो कुशवाहा ने कहा कि अभी से समय में सामुदायिक खेती काफी फायदेमंद हैं. आबादी बढ़ने के साथ साथ जोत के जो खेत हैं वे छोटे पड़ते जा रहे हैं. यह टुकड़ों में बंट गया है. एकड़ से कट्ठा में यह पहुंच गया है. ऐसे में यह जरुरी हो गया है कि किसानों की टीम बनें. वे मिलकर खेती करें. सामुदायिक खेती के फायदे बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि सौ एकड़ में एक साथ खेती की जाय तो कम लागत में खेतों की जुताई हो जायेगी. किसान मिलकर एक या दो ट्रैक्टर खरीदकर खुद खेतों की जुताई कर लेंगे. बीज के लिए भी उन्हें ज्यादा पैसे नहीं देना पड़ेगा. बीज कंपनियां उनके घर तक आकर सस्ते दर पर बीज मुहैया करा देगी. खुले बाजार में जो बीज उन्हें तीस रुपये मिलते हैं वह उन्हें मात्र 18 से बीस रुपये प्रति किलो में मिल जायेंगे. इस तरह दस से बारह रुपये की बचत बीज में प्रति किलो हो जायेगी. सिंचाई में भी आधा खर्च होगा. फसलों का उत्पादन तो बढ़ेगा ही उत्पादित फसलों को मार्केट तक ले जाने में जहां अलग अलग एक हजार रुपये खर्च पड़ेंगे वह सामुदायिक खेती से एक साथ भेजने पर यह खर्च घटकर महज तीन से चार सौ रुपये तक पहुंच जायेगा. इतना ही नहीं एक स्थान पर यदि ज्यादा मात्रा में उत्पादित फसल मिल जाये तो व्यापारी खूद खेतों से ही उत्पादित वस्तुओं को खरीदकर ले जायेंगे. ऐसे में किसानों को परिवहन खर्च भी बच जायेगा और किसान कम लागत में उत्पादित वस्तुओं से अच्छी आमदनी प्राप्त कर लेंगे. श्री कुशवाहा ने कहा कि आज के समय की मांग है सामुदायिक खेती.कम लागत में यदि अच्छी आय प्राप्त करनी है तो किसानों को निश्चित रुप से समूह बनाकर खेती करने पर विचार करनी चाहिए.

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