उत्पादन लागत में कमी लाने का बेहतर तकनीक है जीरो टिलेज

उत्पादन लागत में कमी लाने का बेहतर तकनीक है जीरो टिलेज फोटो::18डा.अनुपमा कुमारीजाले, प्रतिनिधि. गेहूं की बुआई की नई तकनीक जीरो टिलेज विधि किसानों को अपनाने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. किसानों को इस विधि के माध्यम से गेहूं की बुआई करने को लेकर जागरूक किया जा रहा है. आखिर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 13, 2015 7:00 PM

उत्पादन लागत में कमी लाने का बेहतर तकनीक है जीरो टिलेज फोटो::18डा.अनुपमा कुमारीजाले, प्रतिनिधि. गेहूं की बुआई की नई तकनीक जीरो टिलेज विधि किसानों को अपनाने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. किसानों को इस विधि के माध्यम से गेहूं की बुआई करने को लेकर जागरूक किया जा रहा है. आखिर यह विधि है क्या. इस विधि से खेती करने पर किसानों को किस प्रकार फायदा पहुंचेगा. इस पर चर्चा करते हुए स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र के समन्वयक सह शस्य वैज्ञानिक डा़ अनुपमा कुमारी ने कहा कि जीरो टिलेज आसानी से अपनायी जाने वाली एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से गेहूं उत्पादन लागत में कमी लाई जा सकती है़ धान की फसल की कटाई के उपरान्त उसी खेत में बिना जुताई किए हुए इस विधि द्वारा समय से बुआई कर उपज में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है़ बिना जुताई किये हुए जीरो ट्रिल ड्रिल जिसमें उर्वरक एवं गेहूं के बीज एक साथ प्रयोग किये जाते हैं जिसे जीरो टिलेज तकनीक कहते हैं.जीरो टिलेज की जरूरतपारम्परिक तौर पर गेहूं की बुआई के लिए खेत की तैयारी के लिए 6 से 8 बार जुताई की जरूरत होती है़ अधिक बार जुताई करने से विशेष लाभ न होता बल्कि बुआई में देरी हो जाती है़ बुआई में देरी होने से पौधों की संख्या में कमी, कम उपज, उत्पादन लागत में वृद्धि तथा कभी-कभी बहुत कम लाभ होता है़ बिहार में यह समस्या गंभीर है़ विलंब से बुआई के कारण अच्छी-खासी खर्च के बावजूद उपज में 30 से 35 किलो प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन की कमी दर्ज की गयी है़ इस तकनीक को अपनाने से न केवल बुआई के समय में 15-20 दिन की बचत होता है बल्कि उत्पादकता का उच्च स्तर बरकरार रखते हुए खेती की तैयारी पर आने वाली लागत को पूर्णतया बचाई जा सकती है़जीरो टिलेज के लिए खेत की उचित परिस्थितिउन्होंने बताया कि उन क्षेत्रों में जहां धान की कटाई तक मिट्टी गीली हो वहां नमी की उपयुक्त अवस्था आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए़ ज्योंही खेत में चलने पर पैर दबने का निशान बने और ट्रैक्टर चल सके तभी जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुआई करनी चाहिए़ सामान्यत: 35 से 40 प्रतिशत तक नमी वाले खेत में भी इस विधि से बआई की जा सकती है़ खेतों में जब नमी कम हो तब धान की खड़ी फसल में कटाई से एक सप्ताह पहले सिंचाई कर देने से फसल कटाई के तुरंत बाद समुचित नमी में जीरो टिलेज मशीन द्वारा गेहूं की बुआई समय पर हो जाती है़ कम नमी में इस विधि से बुआई करने पर गेहूं बीज का अंकुरण घट जाता है़जीरो टिलेज से बुआई करते समय आवश्यक सावधानियां धान की कटाई के समय इस बात का ख्याल रहे कि कटाई धान के जड़ों से 3-4 ईंच ऊपर से की जाये़ क्योंकि इस मशीन से बुआई के लिए खेत में धान के खुंटो का रहना आवश्यक है़बुआई के समय ट्रैक्टर की गति 5 से 10 किलो मीटर प्रति घंटा होना चाहिए़ बोआई की गहराई भी 3 से 5 सेमी से ज्यादा होने पर गेहूं के कल्ले में कमी पाई जाती है़गेहू की फसल की बुआई के समय ड्रिल की नली पर विशेष ध्यान रखना चाहिए़ क्योंकि इसके रूकने पर बुआई ठीक प्रकार नहीं होती हैबुआई के बाद किसी प्रकार के पाटे का प्रयोग नहीं करना चाहिए एवं काट द्वारा बनाई गई बुआई की नाली को खुला छोड़ देना चाहिए़ बीज उपचारित रहने से चिड़ियों से नुकसान की संभावना नहीं है़बुआई के समय खरपतवार प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिये़ यदि दूब और कुश जैसे खरपतवार खेत में ज्यादा है और पुन: जमने की संभावना है तो ग्लाइफोसेट 400 ग्राम क्रियाशील तव 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़कना चाहिये़ ग्लाइफोसेट 42 प्रतिशत का एक लीटर 100 लीटर पानी में लगता है़ खरपतवार नाशी छिड़काव करने क तीसरे दिन से बुआई शुरू की जा सकती है़

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