मार्गदर्शन के अभाव में नहीं मिल पाता कैरियर को सही दिशा
मार्गदर्शन के अभाव में नहीं मिल पाता कैरियर को सही दिशा मैट्रिक व इंटर के बाद हजारों विद्यार्थी में होगी चुनौती देता है बड़ी संख्या में बेरोजगारों की जमात कैरियर के चुनाव में बरतें सावधानी दरभंगा. मैटिक व इंटर की परीक्षाएं आगामी फरवरी-मार्च में है. इसके बाद जिले के करीब 80 हजार परीक्षार्थियों में कैरियर […]
मार्गदर्शन के अभाव में नहीं मिल पाता कैरियर को सही दिशा मैट्रिक व इंटर के बाद हजारों विद्यार्थी में होगी चुनौती देता है बड़ी संख्या में बेरोजगारों की जमात कैरियर के चुनाव में बरतें सावधानी दरभंगा. मैटिक व इंटर की परीक्षाएं आगामी फरवरी-मार्च में है. इसके बाद जिले के करीब 80 हजार परीक्षार्थियों में कैरियर का सही चुनाव की समस्याएं सामने होगी. विद्यार्थी को कला के क्षेत्र में रूचि होगा तो अभिभावक का दबाव विज्ञान से आगे की पढ़ाई की होगी. विज्ञान में रूचि रखने वाले परीक्षार्थी को उनके पिता की लालसा आइएएस बनाने की होगी. कॉमर्स में रूचि रखने वाले विद्यार्थी दोस्तों के कहने पर विज्ञान अथवा कला से आगे की पढ़ाई का निर्णय लेंगे. यही से विद्यार्थियों में भटकाव शुरू हो जाता है, जो अपने रूचि के विरुद्ध निर्णय लेते हैं. उन्हें अपना मुकाम हासिल करने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है. इसमें से ज्यादातर आगे की पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं तथा अपनी मंजिल हासिल नहीं कर पाते हैं. इस कारण बेरोजगारों की एक बड़ी जमात का जन्म होता है. इसे शिक्षा नीति का दोष कहें या अभिभावकों को अपनी महत्वाकांक्षाओं को थोपने की प्रवृत्ति या फिर सही निर्देशन व परामर्श की सुविधा की कमी कहें. यह इस लेवल की एक बड़ी समस्या हमारे सामने है. प्रारंभिक स्तर से व्यावसायिक शिक्षा की जरूरत विकसित देशों की तरह हमारे यहां प्रारंभिक स्तर से व्यावसायिक शिक्षा की पढ़ाई नहीं होने के कारण मैट्रिक परीक्षा तक छात्र नहीं सोच पाते हैं कि आगे क्या करना है. इसका परिणाम होता है कि इस परीक्षा के बाद अचानक उन्हें बड़े फैसले लेने की नौबत आ जाती है. इसपर से अभिभावकों में अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उनके जेहन में बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस जैसे लोक लुभावना पद पर बिठाने की लालसा रहती है. उनमें बच्चों की रूचि पूछने की जहमत उठाने की प्रवृत्ति नहीं होती. कौन सा विषय बच्चों को अच्छा अथवा कमजोर है, इसका विश्लेषण किये बिना अपना निर्णय थोप देते हैं. पुरुष प्रधान परिवार होने के कारण उनके थाेपे हुए विषय से आगे पढ़ने की विवशता बन जाती है. यही से उन विद्यार्थियों का डाउन फॉल शुरू हो जाता है. जबकि कई समाजशास्त्रियां ने इसे अनुचित बताते हुए बच्चों की रूचि का ख्याल रखते हुए कैरियर का चुनाव करने की बात करते हैं. निर्देशन व परामर्श का अभाव इस लेवल पर विद्यार्थियों के कैरियर के लिए विषय का चुनाव करने में विशेषज्ञों के निर्देशन व परामर्श की जरूरत है. पश्चिमी देशों में इसकी पर्याप्त व्यवस्था है. स्कूल के शिक्षकों को इसके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किये जाते हैं, जिन्हें सभी विषयों से आगे की कैरियर की पूरी जानकारी होती है. शिक्षक स्कूली शिक्षा के समय से ही बच्चों की रूचि का ख्याल रखकर उन्हें विकल्प सुझाते हैं तथा बच्चे आगे की कैरियर को ध्यान में रखकर विषयों का चुनाव करते हैं. इसके अलावा वहां परामर्श केंद्र की पर्याप्त सुविधा होती है, जहां से काउंसेलिंग से विद्यार्थियों को सही मार्गदर्शन मिल जाता है. जबकि हमारे यहां न तो शिक्षक इसके लिए प्रशिक्षित हैं और न ही इस तरह के परामर्श केंद्र की उपलब्धता है. विभिन्न क्षेत्रों में कैरियर की जानकारी नहीं इन विद्यार्थियों में सबसे बड़ी समस्या विभिन्न क्षेत्रों में कैरियर की जानकारी का अभाव होता है. उन्हें अपने परिवेश में जो रोजगार के अवसर दिखते हैं, वहीं तक उनकी सोच पहुंच पाती है. जिसके कारण इन वे इस भीड़ की जमात में शामिल हो जाते हैं. रोजगार के अवसर कम होने और भीड़ ज्यादा होने से पिछड़ जाते हैं तथा बेरोजगारों की जमात में शामिल होने की मजबूरी बन जाती है. जबकि प्रत्येेक विषय का व्यापक क्षेत्र है. इसकी जानकारी से रोजगार के मारामारी से बचा जा सकता है. वहीं व्यावसायिक क्षेत्र का चयन भी कम क्रेज वाले नहीं होते.