सफेद रतुआ रोग से करें सरसों की निगरानी

सफेद रतुआ रोग से करें सरसों की निगरानी 40 से 45 दिन हो गया हो तो करें गेहूं में दूसरी सिंचाई दरभंगा. सरसों में सफेद रतुआ (व्हाइट रस्ट) रोग की निगरानी करें. प्रकोप दिखाई दे तो क्लोरथालोनील दवा 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें. मटर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 8, 2016 6:52 PM

सफेद रतुआ रोग से करें सरसों की निगरानी 40 से 45 दिन हो गया हो तो करें गेहूं में दूसरी सिंचाई दरभंगा. सरसों में सफेद रतुआ (व्हाइट रस्ट) रोग की निगरानी करें. प्रकोप दिखाई दे तो क्लोरथालोनील दवा 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें. मटर की फसल में चूर्णिल फफूंदी (पाउडरी मिल्डयू) रोग की निगरानी करें, जिसमें पत्तियों, फलों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई पड़ती है. इस रोग से बचाव के लिए फसल में कैराथेन दवा का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी अथवा सल्फेक्स दवा का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. मटर की फसल में अच्छे फलन के लिए 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें. यह सुझाव राजेन्द्र कृषि विवि पूसा के नोडल पदाधिकारी ए. सत्तार ने किसानों को दिया है. उन्होंने कहा कि चना, मटर और टमाटर की फसल में फली छेदक कीट के नियंत्रण के लिए फिरोेमोन प्रपंश / 3-4 प्रपंस प्रति एकड़ की दर से लगायें. यदि कीट अधिक हो तो बीटी नियमन का छिड़काव करें. गेहूं में उगने वाले सभी प्रकार के खरपतवार के नियंत्रन के लिए बोआई के 30 से 35 दिनों बाद सल्फोसल्फयूरॉन 33 ग्राम प्रति हेक्टर एवं मेटसल्फयूरॉन 20 ग्राम प्रति हेक्टर दवा 500 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल में छिड़काव करें.ध्यान रहें छिड़काव के वक्त खेत में प्रयाप्त नमी हो. गेहूं की फसल जो 40 से 45 दिनों की हो गयी है तो उसमें दूसरी सिंचाई कर 30 किलो ग्राम नेत्रजन का प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें. मक्का की फसल जो 50 से 55 दिनों की हो गयी हो, उसमें सिंचाई कर 40 किलो नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन कर मिट्टी चढ़ा दे. सब्जियों में निकाई-गुड़ाई एवं आवश्यकतानुसार सिंचाई करें. आलू में 10-15 दिनों के अन्त्तराल में सिंचाई करें.बरसीम और लूसर्न की कटाई 25-30 दिनों के अन्तर पर करेंं. प्रत्येक कटनी के बाद सिंचाई करें. सिंचाई के बाद खेतों में 10 किलो ग्राम प्रति हेक्टर की दर से नेत्रजन दें. दूधारु पशुओं के रख-रखाव एवं खान पान पर विशेष घ्यान दें. पशुओं को रात में खुले स्थानों पर नही रखें. बिछावन के लिए सुखी घास या राख का उपयोग करें.

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