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आराधना की मिसाल पेश कर रहा बिहारी भाई मंदिर

कमतौल : भागम-भाग भरी जिंदगी में इनसान के पास सुकून के दो पल का अभाव है. अपनी-अपनी आस्था के अनुसार इसे तलाशने हर कोई मंदिर-मसजिद का रुख करता है, परंतु वहां होने वाले आयोजनों में भी ध्वनि विस्तारक यंत्र के गूंजते कानफोड़ू आवाज हमारे उद्विग्न मन को शांत नहीं कर पाते, अधिकांश मौकों पर इसके […]

कमतौल : भागम-भाग भरी जिंदगी में इनसान के पास सुकून के दो पल का अभाव है. अपनी-अपनी आस्था के अनुसार इसे तलाशने हर कोई मंदिर-मसजिद का रुख करता है, परंतु वहां होने वाले आयोजनों में भी ध्वनि विस्तारक यंत्र के गूंजते कानफोड़ू आवाज हमारे उद्विग्न मन को शांत नहीं कर पाते, अधिकांश मौकों पर इसके विपरीत और उद्विग्न कर जाते हैं. आजकल सार्वजनिक धार्मिक उत्सव पर कई प्रकार के आयोजन में ओर्केस्ट्रा, जागरण, कीर्तन-भजन आदि में ध्वनि विस्तारक यंत्र से शोरगुल की प्रधानता हो गई है.

यहां तक कि घरेलू आयोजन भी अधिकांश जगहों पर ध्वनि विस्तारक यंत्र के बिना संपन्न नहीं होते. वहीं कमतौल थाना क्षेत्र के पिंडारूछ पश्चिमी पंचायत स्थित बिहारी भाई मन्दिर नाम से प्रसिद्ध कृष्णजी का मंदिर इसका अपवाद है. यहां किसी भी अवसर पर बिना शोरगुल (ध्वनि विस्तारक यंत्र के बिना) के ही आयोजित होते हैं. करीब 75 वर्ष से प्रतिदिन पूजा के समय घंटी और शंख की आवाज गूंजती है.

मंदिर पर ध्वनि विस्तारक यंत्र का उपयोग नहीं किया जाता. मंदिर के प्रबंधक श्रीष चौधरी के अनुसार समिति द्वारा इस मंदिर पर ध्वनि विस्तारक यंत्र का उपयोग प्रतिबंधित है. कीर्तन-भजन और पूजा-पाठ में कोई तामझाम नहीं होता. 1944 ई. से इस मंदिर पर शोरगुल के बिना ही पूजा-अर्चना और कीर्तन-भजन आयोजित होता रहता है.मंदिर के प्रबंधक श्रीष चौधरी ने कहा की साल भर कोई न कोई उत्सव करते रहने के बावजूद परिवार, समाज और देश में शांति और आनंद नहीं मिलता. भगवान को पाना चाहें, जीवन में शांति, सुख-समृद्धि और सुकून चाहें तो शोरगुल रहित धार्मिक उत्सव मनाया

जाना चाहिए.
ध्वनि विस्तारक यंत्र के प्रयोग पर मंदिर प्रबंधन ने लगा रखा है प्रतिबंध
भजन-कीर्तन की बहती रहती भक्ति धारा
जहां शोरगुल वहां की प्रकृति कूपित
भगवान और प्रकृति को साश्वत शांति पसंद है, शोरगुल नहीं. जहां शोरगुल होगा वहां प्रकृति भी कूपित होगी. दूसरे समस्त प्रकार के प्राणियों के साथ भगवान भी प्रसन्न नहीं होंगे. यह बात समझने-समझाने की आवश्यकता है, जो धार्मिक कार्यक्रमों और उत्सवों में शोरगुल से ही खुश होते हैं, भक्ति, मंत्रों या स्तुतियों से नहीं. ऐसे लोगों को बिहारी भाई मंदिर प्रबंधन से
सीख लेनी चाहिए.
प्रकाश गुप्ता, शिक्षक मवि गोपीपट्टी, ढढ़िया
शांति भंग करना धर्म िवरुद्ध
किसी प्रकार के धार्मिक आयोजन में शोरगुल धर्म संगत नहीं है. कोई भी ऐसा काम जो किसी भी जीव (इंसानों से लेकर पशु-पक्षी) की शांति भंग करता है, वह धर्म विरूद्ध है. परमपिता परमेश्वर तक अपनी बात पहुंचाने के लिए शोरगुल करना आवश्यक नहीं है. आज के समय में बिना शोरगुल के पूजा-अर्चना करने वाले बिहारी भाई मंदिर के प्रबंधन का निर्णय सराहनीय है.
अनीता कुमारी, शिक्षिका मवि. अहियारी गोट

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