झोला छाप डॉक्टरों के माध्यम से बेची जाती हैं सरकारी दवाएं

दरभंगा : सरकारी दवाओं के अवैध कारोबार का मुख्य सरगना डीएमसीएच का पूर्व कर्मी निकला. गरीब निरक्षर लोगों के बीच यह कारोबार चलता था. आरपीएफ द्वारा इस मामले का पर्दाफाश किये जाने के बाद यह तथ्य सामने आया. पिछले 12 साल से धंधेबाज राज कुमार गुप्ता सरकारी दवा की सप्लाई किया करता था. गत 30 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 1, 2016 6:51 AM

दरभंगा : सरकारी दवाओं के अवैध कारोबार का मुख्य सरगना डीएमसीएच का पूर्व कर्मी निकला. गरीब निरक्षर लोगों के बीच यह कारोबार चलता था. आरपीएफ द्वारा इस मामले का पर्दाफाश किये जाने के बाद यह तथ्य सामने आया. पिछले 12 साल से धंधेबाज राज कुमार गुप्ता सरकारी दवा की सप्लाई किया करता था. गत 30 अगस्त को आरपीएफ के हत्थे चढ़ने से पहले तक कई बार वह दवा सप्लाई कर चुका है.

जानकारी लेने के बाद बढ़ाया धंधे में कदम: आरपीएफ इंस्पेक्टर अजय प्रकाश ने अनुसार राज कुमार पहले दवा दुकान में काम करता था. वहां से मेडिसीन के बावत जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद उसने इस धंधे में कदम रखा. करीब पिछले 12 साल से वह दवा सप्लाई का काम करता था. उसने पुलिस को बताया कि दरभंगा के बाकरगंज निवासी डीएमसीएच कर्मी रघुवीर भगत समय-समय पर उसे दवा उपलब्ध होने की जानकारी देता था. इसके बाद ही वहां जाकर वह दवा उठाता था.
निरक्षरों के बीच बेची जाती दवा
दवाओं को मूल रूप से झोला छाप चिकित्सकों के माध्यम से बेचता था. कारण सरकारी दवाओं पर मोटे अक्षर पर नॉट फॉर सेल व ओनली गवर्मेंट सप्लाई लिखा होता है. किसी पढ़े-लिखे लोग के हाथ में दवा पड़ने पर इस गोरखधंधे के उजागर होने का खतरा रहता है. इस कारण ग्रामीण क्षेत्र के अपढ़ लोगों के बीच ही इसे खपाया जाता था. मूल कारोबार जयनगर समेत ग्रामीण इलाके में फैला था.
दूर-दूर तक फैला है नेटवर्क
इस धंधे में बड़ा नेटवर्क सक्रिय है. इसके तार दूर-दूर तक फैले हैं. इसी की एक कड़ी जयनगर का संतोष है, जिसे आरपीएफ ने पकड़ा है. यहां से ग्रामीण क्षेत्र के सब सप्लायर को दवा पहुंचायी जाती है. उसके बाद वह उसे बिक्री के लिए झोला छाप चिकित्सकों को उपलब्ध कराता है. वैसे अगर इस मामले की गहन जांच की जाये तो बड़े नेटवर्क का खुलासा हो सकता है.
डीएमसीएच से जुड़े तार: इस धंधे का मुख्य सरगना डीएमसीएच में पहले दवा भंडार में प्रतिनियुक्त था. एक मामले में गड़बड़ी में संलिप्तता पाये जाने के बाद कथिततौर पर उसका तबादला पटना कर दिया गया. बताया जाता है कि पटना जाने के बाद भी उसने कारोबार बंद नहीं किया. गत 28 अगस्त को उसने राज कुमार को सूचना दी कि दवा आ गयी है, आकर ले जाओ. इसके बाद वह उसने घर पहुंचा. बतौर राज कुमार उसने 3500 रुपये देकर 20 कार्टन दवा खरीदी.

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