चंद्रभानु की पराती के बगैर भोर

स्मृतिशेष . चिरयात्रा की ओर बढ़े पदयात्री कवि के कदम जगह-जगह शोकसभा कर दी गयी श्रद्धांजलि दरभंगा : चंद्रभानु सिंह के मधुर गीत-गायन के संग भोर का स्वागत करना नदियामी गांव की आदत सी हो गई थी. यह क्रम पिछले तकरीबन एक दशक से जारी था. यह क्रम बुधवार को तब टूट गया जब इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2016 4:16 AM

स्मृतिशेष . चिरयात्रा की ओर बढ़े पदयात्री कवि के कदम

जगह-जगह शोकसभा कर दी गयी श्रद्धांजलि
दरभंगा : चंद्रभानु सिंह के मधुर गीत-गायन के संग भोर का स्वागत करना नदियामी गांव की आदत सी हो गई थी. यह क्रम पिछले तकरीबन एक दशक से जारी था. यह क्रम बुधवार को तब टूट गया जब इस गांव से इसका लाल छिन गया.
रामगुलाम सिंह के पुत्र-रत्न के रूप में 1922 में जन्मे चंद्रभानु सिंह ने शुम्भा ड्योढ़ी में प्राथमिक शिक्षा-ग्रहण करने के बाद आगे की शिक्षा लिए बाहर हिन्दी विद्यापीठ देवघर की तरफ कदम बढ़ाया तो पूरी तरह समाज के होकर रह गये.
इसी दरम्यान प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी पं.• रामनंदन मिश्र, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बाबू सूरज नारायण सिंह, जननायक कर्पूरी ठाकुर सरीखों का साथ मिला और वे स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े गये.
राष्ट्रवादी रचनाओं के माध्यम से क्रांति की चिंगारी को शोला भी बनाने लगे. देश स्वतंत्र हुआ और जीविका के लिए शिक्षक हुए तो लेखनी और प्रखर होती चली गई. इन्होंने हर तरह की रचनाएं कीं. प्रकृति पर गीत लिखे तो बाढ़-भूकंप जैसी विभीषिकाओं पर भी लिखा. कभी कोयल से कहा ,
बाजब बड़ अनमोल छौ, मयूर से कहा एहन नाच ने नाच नटिनियां तो कभी कोसी की विनाश लीला देख करुण-स्वर में गाया गाइक संगहि एक खाम्ह पर ठाठल एक मड़ैया. कुंवर सिंह, सुभाष, भगत सिंह, गांधी, पटेल आदि के अवदानों को याद करने वाली इनकी लेखनी ने अपने इलाके के बाबा कुशेश्वर के सामने अपनी व्यथा रखी तो राधाजी बरसानेवाली के गुण भी गाये. हलबाहे की पीड़ा को स्वर दिया तो नन्हे-मुन्हों के लिए भी दुलार भरे गीत लिखे- बच्चों कहो नई दिल्ली पर दिल्ली नई नहीं है.
सहज शब्दों का प्रयोग करने में इनका कोई जोड़ा नहीं था. जैसा लिखते थे वैसा ही मनोहारी गायन भी करते थे. वृद्धावस्था में भी जब इनकी स्वर-लहरियां गूंजती थीं तो श्रोता दांतों तले अंगुलियां दबा लेते थे. इनका गांव रोज इन स्वर-लहरियों से मंत्रमुग्ध हो रहा था. बीमार रहते भी हमरे भाग खुजक बेरामे लागल केहन कुहेस, हे जननी रूसल छथिन गणेश जैसी पराती गीत रचनाओं के इनके मधुर गायन से अपनी सुबह का आगाज करने वाला गांव नदियामी आज उदास है. अपना लाडला जो छिन गया.
दरभंगा. विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में बुधवार को महाकवि चंद्रभानु सिंह के निधन पर शोकसभा कर दो मिनट का मौन रखा गया. इसकी अध्यक्षता डॉ बुचरू पासवान ने की. महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी ने महाकवि को निर्मल हृदय वाला विशुद्ध साहित्यकार बताया. इस अवसर पर अध्यक्ष बुचरू पासवान ने महाकवि की कविता का उल्लेख कर श्रद्धांजलि अर्पित की. कार्यक्रम में कमलाकांत झा, फूलचंद्र झा प्रवीण, शंकर झा सहित अन्य लोग उपस्थित थे.

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