बहादुरपुर, दरभंगा : 22 अप्रैल को सीआरपीएफ के जवान नरेश यादव ने पत्नी को कॉल कर पूछा था- सुमित का एडमिशन हुआ कि नहीं, बच्चे कैसे हैं. मां-बाबूजी ठीक हैं न. फिर कहा, अच्छा 27 को तो आ ही रहा हूं. पर होनी को कुछ और मंजूर था. जिसे 27 को घर आना था, उसकी पार्थिव शरीर दो दिन पूर्व आ गया.
सुकमा में नक्सली हमले में शहीद हुए नरेश की मौत की खबर आते ही खराजपुर पंचायत के अहिला गांव में कोहराम मच गया. बूढ़े पिता रामनारायण यादव और मां रासो देवी को तो जैसे काठ मार गया. पत्नी समेत तीनों बच्चे रोते-रोते बेहाल हैं. नरेश परिवार का एकमात्र कमासुत था. पत्नी रीता देवी रोते-रोते कहती हैं कि अब इन बच्चों को कौन देखेगा. बेटी नीतू कुमारी रह-रह कर मूर्छित हो जाती है.
चौकीदार ने नरेश के शहीद होने की जानकारी गांव में दी. किसान राम नारायण यादव के पुत्र नरेश यादव ने 1994 में सीआरपीएफ में हवलदार के पद पर ज्वाइन किया था. पिछली बार नरेश जनवरी में छुट्टी पर आये थे. बड़ा बेटा अमित जेसस एंड मेरी एकेडमी में 10वीं का छात्र है. वहीं छोटे पुत्र सुमित का इसी स्कूल में पांचवीं में नामांकन कराया गया है. पुत्री नीतू कुमारी सिनुआरा उवि में नौंवी की छात्रा है.