आदेशपाल के सहारे चल रहा दुर्गा भवन संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय बहेड़ा
प्राचीन काल से शिक्षा का मूल आधार रहे संस्कृत भाषा जमीनी हकीकत से कटती जा रही है, जबकि पूर्व में देश में संस्कृत ही शिक्षा का आधार माना जाता था.
बेनीपुर. प्राचीन काल से शिक्षा का मूल आधार रहे संस्कृत भाषा जमीनी हकीकत से कटती जा रही है, जबकि पूर्व में देश में संस्कृत ही शिक्षा का आधार माना जाता था. आधुनिक काल तक साहित्य लेखन भी संस्कृत में ही हुआ करता था. गुरुकुल व्यवस्था से लेकर स्कूली व्यवस्था तक, टोल विद्यालय से लेकर संस्कृत शिक्षा बोर्ड व संस्कृत विश्वविद्यालय तक का सफर करने वाले प्राच्य साहित्य संस्कृत की पढ़ाई की अब विद्यालयों मे महज खानापूरी की जा रही है. हालांकि कहने के लिए तो गांव-गांव में आज भी संस्कृत का प्राथमिक, मध्य व उच्च विद्यालय हैं, जो विभागीय उदासीनता का दंश झेल रहा है. अब अधिकांश संस्कृत विद्यालय शिक्षक, छात्र व भवनहीन बनकर रह गया है, फिर भी सरकारी संचिका में यह विद्यालय आज हजारों बच्चों का भविष्य गढ़ रहे हैं. बदलते समय में सरकार ने यहां भी सामान्य विद्यालय की तरह शिक्षण व्यवस्था प्रारंभ तो कर दी, लेकिन उसके पास न तो भवन है और न ही शिक्षक. यह स्थिति शायद पूरे प्रदेश की संस्कृत विद्यालयों की है. मालूम हो कि प्रखंड के विभिन्न गांव में लगभग आधा दर्जन से अधिक प्राथमिक, मध्य व माध्यमिक संस्कृत विद्यालय हैं. इसका संचालन विभागीय संचिका तक ही सिमटकर रह गया है. सरकार द्वारा वहां के बच्चों को मिड डे मिल भी उपलब्ध कराया जाता है, परंतु इन विद्यालयों में रिक्त पड़े सैकड़ों शिक्षक के पद को भरने की दिशा में सरकार द्वारा पहल नहीं की जा रही है. दशकों से खाली पड़े शिक्षकों से इन विद्यालयों का संचालन कहीं आदेशपाल के सहारे तो कहीं बिना शिक्षक के स्वत: ही हो रहा है. प्रखंड के बहेड़ा, लवाणी, तरौनी समेत बहेड़ा स्थित दुर्गा भवन प्राथमिक सह मध्य विद्यालय अति प्राचीन काल का है. इसका संचालन एक आदेश पाल की सहारे हो रहा है. इस विद्यालय में वर्ग एक से आठ तक में 156 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए एक दशक से अधिक से एक भी शिक्षक नहीं हैं. यहां मात्र एक आदेशपाल प्रतिदिन बच्चों की उपस्थिति बनाकर उन्हें मिड डे मिल खिलाकर घर वापस कर देते हैं. वैसे संस्कृत शिक्षा बोर्ड द्वारा बगल के डखराम संस्कृत विद्यालय के एक शिक्षक सुभाष चंद्र झा को विद्यालय का प्रभारी बना दिया गया है, लेकिन वे भी अपने मूल विद्यालय में ही समय बिता रहे हैं. इससे इस विद्यालय में नामांकित बच्चों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है. वहीं इससे भी एक अनोखा विद्यालय है कृतनाथ संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय लवाणी, जहां के बच्चे बिना पढ़े ही पंडित बन रहे हैं. वहां आदेशपाल भी नहीं हैं, फिर भी वहां वर्ग एक से आठ तक 35- 40 बच्चों को प्रतिदिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का दावा वहां के प्रभारी शिक्षक गंगेश झा द्वारा किया जा रहा है. यहां के प्रभारी बने गंगेश झा पूर्व से ही डखराम संस्कृत विद्यालय के प्रभारी एचएम हैं. एक साथ दो-दो विद्यालय का एचएम होने के कारण न तो वे डखराम अपने मूल विद्यालय में समय दे पा रहे हैं और न ही लवाणी में. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह सब संस्कृत शिक्षा बोर्ड में पैसे की खेलबेल पर हो रहा है. शिक्षकविहीन विद्यालय का प्रभारी बनने के लिए अगल-बगल के संस्कृत विद्यालय के शिक्षकों की होड़ लगी हुई है. जो जितने पहुंच व रसुख वाले हैं, उन्हें उतने विद्यालय का प्रभारी बना दिया जाता है. इसीके कारण एक शिक्षक दो-दो विद्यालय का प्रभारी बने हुए हैं. यही हाल संस्कृत विद्यालय तरौनी का है. यहां एक मात्र शिक्षिका रेखा चौधरी दो से सौ बच्चों का भविष्य गढ़ रही हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार वे भी अधिकांश समय विद्यालय से गायब ही रहती हैं. यही हाल देबराम, डखराम, नवादा, फोतलाहा, कल्याणपुर, बैगनी आदि संस्कृत विद्यालय का है. ये विद्यालय सरकारी उदासीनता के कारण अपनी मूल उद्देश्य से भटकती जा रही है. इस संबंध में बीइओ इंदू सिन्हा ने कहा कि संस्कृत शिक्षा बोर्ड की अलग व्यवस्था है. इस संबंध में उसे कोई जानकारी नहीं है. सिर्फ वे मॉनिटरिंग कर रही हैं.
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