Darbhanga News: प्रवीण कुमार चौधरी, दरभंगा. शिक्षा, समाज सेवा, धर्म, आध्यात्म तथा संस्कृति के क्षेत्र के जाने-पहचाने आचार्य किशोर कुणाल का धराधाम से उठ जाना दरभंगावासियों को गुजर रहे साल के साथ दर्द दे गया. उनका दरभंगा से भी काफी गहरा रिश्ता रहा है. उन्होंने अपने जीवन की उच्चतम शैक्षणिक उपाधि यहीं से प्राप्त की थी. साहित्य विषय से आचार्य (स्नातकोत्तर) की डिग्री एवं विद्यावारिधि (पीएचडी) की उपाधि संस्कृत विवि से ही प्राप्त की थी. वे संस्कृत विवि के कुलपति रहे पंडित काशी नाथ मिश्र के शिष्य थे. भारतीय पुलिस सेवा से वीआरएस लेने के बाद करीब ढाई वर्षों तक संस्कृत विवि में कुलपति पद पर सेवा दी. आचार्य किशोर कुणाल अगस्त 2001 से फरवरी 2004 तक संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. उन्होंने स्वेच्छा से कुलपति का पद त्याग दिया.
कुलपति के कार्यकाल में प्रतिदिन माधवेश्वर परिसर में करते थे ध्यान
कुलपति के कार्यकाल में आचार्य कुणाल माधवेश्वर परिसर में प्रतिदिन आते थे. वहां प्रतिदिन पूजा-अर्चना के साथ काफी देर तक ध्यान लगाया करते थे. कुलपति पद से हटने के बाद जब 2010 में वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद के अध्यक्ष बने, तब माधवेश्वर परिसर के विकास की योजना बनायी. उनकी योजना के तहत ही श्यामा मंदिर का अधिग्रहण कर माधवेश्वर परिसर के मंदिरों को बेहतर तरीका से संचालित करने के लिए मां श्यामा न्यास समिति का गठन किया गया.अवसर मिलते ही पहुंच जाते थे छात्रों का वर्ग लेने
कुलपति के सेवा काल में वे प्रशासनिक काम के अलावा मौका मिलते की छात्रों का वर्ग लेने पहुंच जाया करते थे. स्नातकोत्तर साहित्य विभाग के तब के छात्र उनको विषय के निष्णात प्राध्यापक के तौर पर याद करते हैं. उन्होंने दर्जनों पुस्तकें भी लिखी. इसमें से महादलित पर लिखित पुस्तक सहित कुछ अन्य पुस्तकें राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित रही.व्यक्ति नहीं संस्था थे आचार्य कुणाल: त्रिपाठी
आचार्य कुणाल के कुलपति काल में बतौर उपकुलसचिव रहे प्रो. श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि वे व्यक्ति नहीं संस्था थे. धर्म, संस्कृति एवं समाजसेवा क्षेत्र से जुड़े दर्जनों संस्था के संस्थापक आचार्य कुणाल हनुमान भक्त, आदर्श पुरुष, उद्भट विद्वान, शास्त्रों के ज्ञाता, कर्मयोगी, आध्यात्मिक पुरुष, उच्च स्तर के मानवतावादी तथा उच्च कोटि के लेखक थे. उनका निधन धर्म एवं संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षति है.कुणाल ने कहा, खबर से समाप्त हो गयी कंट्रोवर्सी
एमएलएसएम कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे वरीय पत्रकार डॉ कृष्ण कुमार कहते हैं कि जब आचार्य कुणाल संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति बनकर आये, तब चर्चा थी कि गैर शिक्षक को कुलपति बना दिया गया है. कुलपति कार्यालय में उनके टेबुल पर मुद्राराक्षस पुस्तक देखकर डॉ कृष्ण कुमार ने जिज्ञासा जतायी. इस पर कुणाल ने कहा कि, अभी वर्ग लेकर आये हैं. प्रभात खबर में तब प्रमुखता से खबर प्रकाशित हुई थी. इस पर कहा कि आपने इस खबर से एक कंट्रोवर्सी को समाप्त कर दिया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है