Darbhanga News: संस्कृत से मिलती सभी ज्ञान परंपराएं: लक्ष्मी निवास पांडेय

Darbhanga News:लोगों ने संस्कृत को देवभाषा कहकर देवलोक पहुंचाने का काम किया है. यह गलती हम सबकी है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 15, 2024 10:32 PM

Darbhanga News: दरभंगा. लोगों ने संस्कृत को देवभाषा कहकर देवलोक पहुंचाने का काम किया है. यह गलती हम सबकी है. भारत को भाषा सूत्र में बांधा नहीं जा सकता है. सभी भाषाओं के विकास से ही संस्कृत की भी तरक्की होगी. ये बातें भारतीय समाज विज्ञान शोध परिषद (आइसीएसएसआर) द्वारा प्रायोजित लनामिवि के बीएड नियमित एवं विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एवं भारतीय ज्ञान परम्परा एट विकसित भारत विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में रविवार को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मीनिवास पांडेय ने कही. प्रो. पांडेय ने कहा कि सभी ज्ञान परंपरा संस्कृत से मिलती है. शुरू से लेकर अभीतक दुनिया भारत से चरित्र निर्माण सीख रहा है. भारत ने हमेशा ज्ञान का प्रकाश फैलाया है. उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता में भी लिखा गया है कि ज्ञान प्राप्त करना मुश्किल पथ है. ज्ञान प्राप्त करने के लिए लगातार अध्ययन करने की जरूरत है. भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने की जरूरत हम सबकी है.

मिथिला ने शुरू की तर्क व न्याय की परंपरा

बतौर मुख्य वक्ता नई दिल्ली इग्नू के प्रो. अरविंद कुमार झा ने कहा कि मिथिला ने तर्क और न्याय परंपरा की शुरुआत की. मैथिल होने के कारण आप तर्क परंपरा के संतान हैं. शिक्षा-शास्त्र के छात्र अगर तर्क के साथ बात न करें तो वे अपने ज्ञान के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. प्रो. झा ने कहा कि मिथिला की धरती से ही महर्षि गौतम के हाथ से न्याय निकला है. न्याय दर्शन सबसे ज्यादा भारतीय परम्परा में है. मिथिला हमेशा न्याय की धरती रही है. सेमिनार के को-ऑर्डिनेटर डॉ अरविंद कुमार मिलन व दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ प्रियंका राय ने आगत अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया. संचालन दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ संजीव कुमार साह ने किया. समापन समारोह में सेमिनार में प्राप्त आलेखों को पुस्तक का रूप देकर विमोचन किया गया.

अंतिम दिन तकनीकी सत्रों में छह उपविषयों पर प्रतिभागियों ने अपने-अपने आलेख पढ़े. समापन समारोह में डॉ राजीव कुमार, डॉ शम्भु प्रसाद, डॉ अखिलेश मिश्र, डॉ निधि वत्स, डॉ मिर्जा रूहुल्लाह बेग, डॉ उदय कुमार, डॉ शुभ्रा, डॉ जय शंकर सिंह, डॉ रेशमा तबस्सुम, कुमार सत्यम, गोविन्द कुमार व शोधार्थी व बीएड के छात्र-छात्राएं शामिल थे.

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