Darbhanga News: विकास की राह पर अग्रसर होना है, तो भारतीय ज्ञान परंपरा की तरफ चलना होगा

Darbhanga News:मुख्य वक्ता सह अरविंद महिला महाविद्यालय पटना की प्राध्यापिका डॉ अर्चना त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में अनेकता में एकता पर जोर है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 1, 2024 11:51 PM

Darbhanga News: दरभंगा. ””भारतीय ज्ञान परंपरा का हिंदी साहित्य में संवहन”” विषय पर हिंदी साहित्य भारती बिहार की ओर से आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी में मुख्य वक्ता सह अरविंद महिला महाविद्यालय पटना की प्राध्यापिका डॉ अर्चना त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में अनेकता में एकता पर जोर है. कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय एवं काशी विश्वविद्यालय प्राचीन समय से भारतीय ज्ञान परंपरा का अजस्र स्रोत रहा है. इसने हिंदी भाषा द्वारा इन परंपराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचालित किया है. ज्ञान एवं शिक्षा में अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि ज्ञान मनुष्य को सच्चे अर्थों में मानव बनाता है. यह हिंदी भाषा ही है जो जाति बंधनों से मनुष्य को मुक्ति की राह दिखाती है. ज्ञान किसी गोत्र या जाति के लिए नहीं है. कहा कि वास्तव में यदि हम विकास की राह पर अग्रसर होना चाहते हैं, तो हमें भारतीय ज्ञान परंपरा की तरफ चलना ही होगा.

बलहीन मनुष्य कभी आत्मा या धर्म को नहीं कर सकता प्राप्त- डॉ पाठक

अध्यक्षता करते हुए लनामिवि के पीजी हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ प्रभाकर पाठक ने नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व पर प्रकाश डाला. कहा कि मनुष्य के पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) बिना स्वस्थ शरीर के नहीं प्राप्त किया जा सकता. कहा कि बलहीन मनुष्य कभी आत्मा को या धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता. इसके लिए स्वस्थ देह की जरूरत है. बताया कि किस तरह प्राचीन काल में पुरोहित अग्नि की पाचकता, दाहकता और प्रकाशकता की शक्तियों से नगर की सुरक्षा करते थे. यह भारतीय ज्ञान परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा रहा है.

सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर संस्कृत की रचनाओं में भरा पड़ा है भारतीय ज्ञान परंपरा- डॉ दिनेश

हिंदी पखवाड़ा के तहत आयोजित कार्यक्रम में सीएम साइंस कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ दिनेश प्रसाद साह ने कहा कि सिन्धु घाटी सभ्यता से लेकर संस्कृत के महाकाव्य और नाट्यशास्त्र तक भारतीय ज्ञान परंपरा प्रचुर मात्रा में दिखाई पड़ती है. रांगेय राघव ने ””मुर्दों का किला”” लिखकर हड़प्पा संस्कृति पर कलम चलायी. दक्षिण के साहित्यकार शिवाजी सावंत और विश्वास पाटिल आदि के ऐसे अनेक उपन्यास हमें मिलते हैं, जिसमें कृष्ण और कर्ण के चरित्र को लेकर आधुनिक दृष्टि का संधान ही नहीं बल्कि समाधान भी प्रस्तुत किया गया है.

भारतीय ज्ञान परंपरा महासागर की तरह- डॉ संतोष

संगठन के संयुक्त महामंत्री डॉ संतोष कुमार ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा महासागर की तरह है और हिन्दी आदि भाषाएं निर्झरिणी की तरह प्रवाहित हो रही है. संगठन महामंत्री डॉ सतीश चंद्र ने कहा कि मानव समाज का सकारात्मक उन्नयन सामुदायिक सहयोग और सामाजिक सद्भाव पर निर्भर करता है. वह संस्कृति ही है, जो मनुष्य बनाती है. ऐसे में हिन्दी साहित्य के लेखक, कवि और विभिन्न विधाओं का दृष्टिकोण भारतीय परंपरा के आलोक में स्पष्ट हुआ है. संचालन डॉ दिनेश साह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ विश्व दीपक त्रिपाठी ने किया.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version