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Darbhanga News: कमला बलान नदी के जलस्तर में वृद्वि से मंडराने लगा बाढ़ का खतरा

Darbhanga News:कमला बलान नदी के जलस्तर में अचानक बेतहाशा वृद्धि से चतरा, रही टोल, बौराम मुसहरी समेत अन्य गांवो पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है.

Darbhanga News: गौड़ाबौराम. कमला बलान नदी के जलस्तर में अचानक बेतहाशा वृद्धि से चतरा, रही टोल, बौराम मुसहरी समेत अन्य गांवो पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है. जलस्तर में वृद्धि से इन गांवों का सड़क संपर्क भंग हो गया है. लोग नाव से आवागमन करने को मजबूर हैं. पानी से घिरे गांव के 90 प्रतिशत लोग पशुपालन करते हैं. पशु को चारा खिलाने के लिए वे लोग ज्यादातर जनेर की खेती करते हैं. कमला नदी के रौद्र रूप ने सैकड़ों खेतों में लगे जनेर व मनेजरा की फसल को डुबोकर बर्बाद कर दिया है. पशुपालक पशु चारे के लिए दर-दर भटक रहे हैं. दूर-दराज के गांव से पशुपालक चारे का प्रबंध कर रहे हैं. वहीं समय से चारा नहीं मिलने से भूखे पशु बीमार पड़ने लगे हैं. लोग निजी पशु चिकित्सक से पशुओं का इलाज कराने पर विवश है.

प्रत्येक साल बाढ़ के पानी के बीच रहना नियति

बताया जाता है कि 1984 से पहले लोगों का जनजीवन खुशहाली से बीत रहा था. बाढ़ आती थी तो लोगों को खुशहाल कर चली जाती थी. खेतों में धान, मूंग, गेंहू, सरसोे, मकई, आलू, टमाटर, गोभी आदि फसलें लहलहाती रहती थी. बाढ़ आती थी और कुछ ही दिनों में वापस चली जाती थी. इससे खेतों को फायदा हुआ करता था. लोग पहले पगडंडी कच्ची सड़क से एक गांव से दूसरे गांव आते-जाते थे. ज्यादा दिनों तक सड़के पानी में डूबी नहीं रहती था. वहीं 1984 के बाद कमला- बलान नदी के दांए व बांए तटबंध के बन जाने पर लोगों का घर व खेत-खलिहान महीनों पानी से घिरा रहता है. नदी जब उफान पर रहती है तो लोग घर-बार छोड़कर बांध पर शरण लेते हैं. इन गांव के लोगों को प्रत्येक साल बाढ़ के पानी के बीच रहना नियति बन गयी है.

सरकारी नावों का परिचालन शुरू

मालूम हो कि वर्तमान में जल संसाधन विभाग से पूर्वी व पश्चिमी तटबंध को उंचा कर उसपर कालीकरण का कार्य हो रहा है. बांध को उंचा कर दिये जाने से लोग हमेशा डरे-सहमे रहते हैं. लोगों का कहना है कि नेपाल पहले बांध के अनुकूल नदी में पानी छोड़ता था, लेकिन अब बांध ऊंचा हो जाने से नेपाल अधिक मात्रा में पानी छोड़ेगा तो गांव में बने कच्चा व पक्का मकान पानी के तेज धारा में बहकर ध्वस्त हो जाएगा. चतरा के ग्रामीण बुची मुखिया, नारायण मुखिया, अशोक शर्मा, नत्थन यादव, सुभाष यादव, राम उदगार मंडल आदि ने बताया कि जब नदी में बांध नहीं थी तो उस समय धान, गेहूं, सरसों, मक्के आदि फसल हुआ करता था. बाढ़ आती थी तो अच्छी पैदावार होती थी. बांध बनने के बाद प्रत्येक साल बाढ़ फसलों को बर्बाद कर देती है. अब सिर्फ गेहूं की फसल होती है. लोगों ने बताया कि पिछले 40 वर्षों से अधिकारी व जनप्रतिनिधियों से पुनर्वास की गुहार लगायी गयी, लेकिन किसी ने पुनर्वास दिलाने का काम नहीं किया. इस संबंध में सीओ अभिषेक आनंद ने बताया कि अख्तवाड़ा व चतरा घाट पर सरकारी नाव का परिचालन शुरू कर दिया गया है. पशुचारे के लिए उच्चाधिकारी से बातचीत की जा रही है. आदेश आते ही पशुचारे की भी व्यवस्था करायी जाएगी. रही बात पुनर्वास की तो यह मामला संज्ञान में आया है. इसकी जांच करायी जायेगी.

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