पशु चिकित्सालय केवटी रनवे में चहारदीवारी व मुख्य दरवाजा नहीं रहने से पशुपालकों ने किया अतिक्रमण
मुख्यालय के समीप स्थित प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय केवटी रनवे में चहारदीवारी व मुख्य दरवाजा नहीं रहने से पशुपालकों के द्वारा परिसर में अतिक्रमण कर लिया गया है
केवटी. मुख्यालय के समीप स्थित प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय केवटी रनवे में चहारदीवारी व मुख्य दरवाजा नहीं रहने से पशुपालकों के द्वारा परिसर में अतिक्रमण कर लिया गया है. पशु चिकित्सालय परिसर में पशु के साथ लोगों का जमावड़ा लगा रहता है. पूर्व में प्रखंड क्षेत्र के पशुपालक अपने पशु का इलाज कराने यहां आते थे. पशुओं को भर्ती भी किया जाता था. बाद में पशु भर्ती भवन के जर्जर हो जाने के बाद पशुपालक इलाज कराने के बाद घर ले जाते हैं. मुख्यालय के समीप प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय की स्थापना 1958 में 10.22 डिसमिल जमीन में की गयी थी. इसमें कार्यालय, पशु इलाज के लिए शेड, भर्ती के लिए भवन, भंडार कक्ष बनाया गया था. सरकारी निर्देश के अनुसार अप्रैल से सितम्बर माह तक सुबह सात बजे से 11बजे व दोपहर चार बजे से शाम छह बजे तक पशुओं का इलाज किया जाता है. वहीं अक्टूबर से मार्च तक सुबह आठ बजे से 12 बजे व दापेहर तीन बजे से पांच बजे तक प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय में पशु का ईलाज करने का समय निर्धारित किया गया है. प्रखंड क्षेत्र के पशुपालक पशु को लेकर अस्पताल पहुंचने पर एक रुपए का पर्ची कटाकर इलाज कराते हैं, वैसे बिना पशु लाये बिना बीमारी बताकर पशुपालक चिकित्सक से सलाह के बाद दवा ले जाते हैं. चिकित्सक रमेश प्रसाद रमण ने बताया कि घेराबंदी नहीं रहने से काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. चाहरदीवारी के लिए परिसर का नापी कराकर विभाग को भेजा जा चुका है. चिकित्सालय में प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी का पद कई वर्ष से रिक्त हैं. एक भ्रमणशील पशु चिकित्सक रमेश प्रसाद रमण जो प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी के भी प्रभार में है. इसके अलावा एक डाटा एंट्री आपरेटर, एक परिचारी हैं. पशुधन सहायक का एक पद, चतुर्थ वर्गीय कर्मी का एक पद रिक्त हैं. पशु चिकित्सालय परिसर में ही चिकित्सक का आवास भी है, जहां चिकित्सक के बदले कर्मी आवास में रहते हैं. परिसर में बाहरी लोग भी आवास सुविधा का लाभ लेने से पीछे नहीं है. पशु चिकित्सालय में पशुपालकों को पशु के लिए कृत्रिम गर्भाधान, बंध्याकरण की सुविधा उपलब्ध है. गाय, भैंस का कृत्रिम गर्भाधान तथा खस्सी का बंध्याकरण किया जाता है. माह में 30 पशु का कृत्रिम गर्भाधान तथा एक दर्जन खस्सी का बंध्याकरण किया जाता है. वही पशुपालकों को पशु के लिए भूख, बुखार, डायरिया,अठगोरवा की दवा दिया जा रहा है.
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