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दो से तीन फुट पानी में डूबे इलाके को समस्या की जगह अवसर में तब्दील कर रहे किसान

जिले में इन दिनों राह चलते कहीं भी सड़क किनारे सिंघाड़ा (जल फल) खरीदने के लिए लोगों की भीड़ लगी नजर आ जाती है.

दरभंगा. जिले में इन दिनों राह चलते कहीं भी सड़क किनारे सिंघाड़ा (जल फल) खरीदने के लिए लोगों की भीड़ लगी नजर आ जाती है. जलीय अखरोट कहे जाने वाले सिंघाड़े की फसल के प्रति किसानों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है. चौर, नाला, नहर, गड्ढे में जमा बरसाती एवं दूषित जल को किसान समस्या की जगह अवसर में बदल रहे हैं. सिंघाड़ा की खेती से आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दूसरे किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं. कई जगहों पर समेकित रूप से मत्स्य पोषण योजना के साथ किसान सिंघाड़ा की खेती भी की जा रही है. पोषक तत्वों से भरपूर सिंघाड़ा का कारोबार जिला से बाहर निकलकर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान तक पहुंच रहा है.

दूसरे जिला से आकर कर रहे कारोबार

सिंघाड़ा के व्यवसाय से जुड़े थौक व्यापारी सीतामढ़ी निवासी महेंद्र कुमार ने बताया कि इन दिनों इस जिला से प्रत्येक दिन 10 से 20 क्विंटल सिंघाड़ा खरीदते हैं. उसे पटना, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मोतिहारी, समस्तीपुर, भागलपुर के अलावा राज्य के अन्य जिलाें के व्यापारियों को भेजते हैं. जिन्हें भेजते हैं उसमें से अधिकांश व्यापारी सिंघाड़ा को दूसरे देश नेपाल और भूटान तक सेल करते हैं. कई लोग इस फल को दूसरे राज्य में सिर्फ पहुंचाने के कारोबार से जुड़े हैं.

प्रोडक्ट का दर्जा मिले तो बढ़े दायरा

बहादुरपुर प्रखंड के जलवार पंचायत के किसान तस्लीम, ढोरबा, ढोराई सहनी, कारी सहनी आदि ने बताया कि इस फल को कृषि विभाग द्वारा प्रोडक्ट का दर्जा नहीं मिलने से खेती के लिए अनुदान नहीं मिल रहा है. इस वजह से सिंघाड़ा की खेती अभी भी सीमित क्षेत्र में ही होती है. लहेरियासराय टावर पर ठेला लगाकर सिंघाड़ा बेच रहे अशोक नोनिया, असलम, राज सहनी, दरभंगा टावर के फुटपाथ पर सिंघाड़ा बेच रहे सोना महतो, कारी सहनी, अब्दुल्ला, दिनेश यादव आदि ने बताया कि प्रत्येक साल इस महीने में कारोबार शुरू कर देते हैं. इस कारोबार में अच्छा मुनाफा है. बाजार में फिलहाल 70-80 रुपए प्रति किलो बिक्री हो रही है. इस प्रोडक्ट को भी मखाना उद्योग की तरह दर्जा मिलना चाहिए.

प्रचूर मात्रा में कैल्शियम

डॉ नवीन कुमार ने बताते हैं कि सिंघाड़ा खाने के बहुत सारे फायदे हैं. इसमें कैल्शियम प्रचूर मात्रा में होता है. यह फाइबर और विटामिन का भी अच्छा स्रोत है. इस फल से आटा भी तैयार होता है. इसका उपयोग पूजा में भी होता है. लाल छिलका सिंघाड़ा, हरा छिलका सिंघाड़ा के अलावा कुछ और किस्म हैं. इसमें लाल गठुआ, हरा गठुआ शामिल है.

लागत और मुनाफा

किसान अमरेश कुमार, दिनेश सहनी, शत्रुघ्न सहनी ने अनुभव के आधार पर बताया कि सिंघाड़ा 18 महीने की खेती है. इसमें एक हेक्टेयर के तालाब से 80 से सौ क्विंटल तक हरे फल का पैदावार शुरू हो जाता है. साथ ही 18 से 20 क्विंटल के करीब सूखी गोटी भी मिल जाती है. सिंघाड़े के प्रति हेक्टेयर की फसल में करीब 50 हजार की लागत आती है.

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