दरभंगा. बरगद के पेड़ के नीचे का नजारा आज बदला हुआ था. नख-शिख शृंगार किये महिलाएं नयी दुल्हन की तरह वहां जुटी थी. पारंपरिक लोकगीतों के बोल वातावरण में फूट रहे थे. महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करने में जुटी थी. यह दृश्य किसी एक खास बरगद के वृक्ष के समीप का नहीं था. लगभग सभी वटवृक्ष के नीचे कमोबेश ऐसा ही नजारा बना हुआ था. अवसर था विवाहिताओं का प्रमुख लोकपर्व वटसावित्री का. पति की लंबी आयु एवं आपदा-विपदाओं से रक्षा के लिए मनाया जाने वाला यह पर्व समाज के सभी तबके की सुहागन श्रद्धालु महिलाओं ने परंपरानुसार उत्साह के वातावरण में मनाया. इसे लेकर यूं तो सभी व्रति विवाहिताओं के घर उल्लास बना हुआ था, लेकिन नवविवाहिताओं के घर वटसावित्री पर्व को लेकर उत्सवी माहौल नजर आ रहा था. गुरुवार को व्रती महिलाओं ने पवित्र जल से स्नान कर नया परिधान धारण किया. पैर की उंगली से लेकर मांग तक शृंगार किया. हाथों में मेंहदी रचायी तो पैरों में लाल रंग से आकर्षक आकृति उकेरी. नाखूनों को भी रंग लिया था. अपने पास उपलब्ध आभूषण धारण कर जब पूजा की डाली लेकर व्रती महिलाएं घर से निकली तो नई नवेली दुल्हन मालूम पड़ रही थी. टोली बनाकर महिलाएं निकट के बरगद के वृक्ष के नीचे पहुंची. पूजा की डाली में रखे लीची, आम सहित अन्य फलों एवं मिठाई का प्रसाद भिंगोये गये अरवा चावल एवं चना के साथ भोग लगाया. इसके बाद पूजा-अर्चना की. वट वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर अपने सुहाग की आपदाओं से रक्षा करने एवं उन्हें चिरायु बनाने का आशीर्वाद मांगा. पति का प्रतीक मान वट वृक्ष को बांस के बने नये बेना से हवा की. वृक्ष की सेवा की. उसे गले लगाया. पूजन के दौरान बाल में वटवृक्ष का पत्ता लगाया. कई व्रतियों ने अपने-अपने घरों में वट वृक्ष की टहनी लगाकर विधि-विधानपूर्वक पूजन किया. इसे लेकर माधवेश्वर परिसर स्थित वृक्ष के अलावा, सैदनगर, जीएम रोड समेत प्राय: सभी बरगद के वृक्ष के नीचे दोपहर बाद तक व्रतियों का जमावड़ा लगा रहा. नवविवाहिताओं के घर पहले वर्ष विशेष धूमधाम से वटसावित्री पूजन किया गया. नवविवाहिता के ससुराल से आये चना आदि का वितरण उपस्थित महिलाओं के बीच किया गया. खीर भी परोसे गये. पूरे दिन वातावरण में पारंपरिक गीतों के बोल गूंजते रहे.
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