सुबोध नारायण पाठक, बेनीपुर. मुहर्रम पर बेनीपुर नगर परिषद मुख्य बाजार निवासी तपेश्वर महतो के घर विशेष उत्साह है. घर के आंगन में इमामबाड़ा और तुलसी चौरा की पूजा एक साथ सालों भर होती है. उनके आंगन में मुहर्रम के निशान की पूजा होती है. तपेश्वर महतो के साथ स्थानीय कुछ अन्य लोग श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा करते है. तपेश्वर ने बताया कि पूर्वजों द्वारा ताजिया निशान की शुरू की गयी पूजा, अब परंपरा बन गयी है.पुरूषों के साथ परिवार की महिलाओं की इसमें अहम भागीदारी होती है. वे रोजा रखती है और खीचड़ा तथा मेबा का भोग लगाती है. तपेश्वर महतो के आंगन में इमामबाड़ा है. सालों भर इसकी परंपरा के अनुसार पूजा की जाती है. बगल में तुलसी चौरा है. उसकी भी रोज पूजा होती है. तपेश्वर महतो बताते हैं कि उनके परिवार में यह परंपरा कब से चली आ रही है, इसकी सही जानकारी नहीं है. जब से होश संभाले, तब से परिवार के सदस्यों को मुहर्रम मनाते देख रहे हैं. तपेश्वर ने बताया कि पूर्वजों से सुनने में आया कि मन्नत पूरा होने पर आंगन में ही इमामबाड़ा बना कर मुहर्रम मनाया जाने लगा. मुहर्रम के दौरान विशेष इबादत के लिए करहरी के मौलाना वसीम अल्लाह फातिया पढ़ने आते हैं. मुस्लिम विधान के अनुसार मुहर्रम की पहली से पंचमी के बीच मिट्टी का मुठड़ा बनाकर उसे फूल माला से लपेट कर इमामबाड़ा पर ढ़ंक कर रखा जाते हैं, जो ताजिया के साथ उठता है. रोजा रखकर पूजा करने वाली महिला नीरो देवी, सरस्वती देवी, अनीता देवी, प्रमिला देवी आदि ने कहा कि जब से ससुराल आया हूं, तब से इस परंपरा में अपनी सहभागिता निभा रही हूं. भगवान बाबू महतो, तपेश्वर महतो, रमन कुमार आदि ताजिया काे अंतिम रूप देते मिले. पूछने पर कहा कि छह- सात पीढ़ी से उनके यहां मुहर्रम मनाया जा रहा है. परंपरा का निर्वहन करते हुए परिवार के लोग आज भी ताजिया बनाकर पूजा अर्चना करते हैं. घर के बड़े बुजुर्ग ताजिया बनाकर मिलान करते हैं. मंगलवार को को चौकी घुमाया गया. बुधवार को ताजिया मिलान किया जाएगा. मुस्लिम समुदाय के लोग भी ताजिया लेकर वहां मिलान करने आते हैं. एक साथ कर्बला तक तजिया लेकर जाते हैं.
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