Darbhanga News : दूसरे राज्यों में मिठास परोसने वालों को आयातित गुड़ आसरा
बेनीपुर अनुमंडल से अब गुड़ की मिठास फिकी पड़ती जा रही है.
सुबोध नारायण पाठक, बेनीपुर
एक जमाने में गुड़ उत्पादन का हब माने जाने वाला बेनीपुर अनुमंडल से अब गुड़ की मिठास फिकी पड़ती जा रही है. यहां के लोगों को भी अब अन्य प्रदेश से आयातित गुड़ पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जबकि पूर्व में यहां के बने गुड़ अन्य प्रदेशों में भेजे जाते थे. विदित हो कि पूर्व में अनुमंडल क्षेत्र के बेनीपुर, नवादा, बैगनी, हरिपुर, बेलौन, मकरमपुर, मोतीपुर, अंटौर, मिल्की, मायापुर, मौजमपुर, पकड़ी, जयंतीपुर आदि गांवों में बड़े पैमाने पर गुड़ का उत्पादन हुआ करता था. इसकी मुख्य वजह यहां के बहुतायात किसानों के गन्ना की खेती करनी थी. उस समय गन्ना की खेती किसानों के लिए एकमात्र मुख्य नकदी फसल हुआ करती थी. किसान गन्ना की अपनी फसल विभिन्न गांवों में चलने वाले गुड़ उद्योग, क्रौसर संचालक व चीनी मिल को आपूर्ति करते थे. बाद में सरकारी उदासीनता के कारण क्षेत्र की सभी चीनी मिलें बंद हो गई. साथ ही विभिन्न गांवों में चलने वाला गुड़ उद्योग भी ठप पड़ गया, लिहाजा किसानों ने भी गन्ना उत्पादन से मुंह मोड़ लिया.
पुश्तैनी धंधे से दूर हो गये लोग
गन्ना उत्पादक किसानों का कहना है कि पूर्व में किसान अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए अपनी जमीन के आधा से अधिक रकवा में ईंख की खेती करते थे. इस ईंख को गांव के क्रौसर संचालक गुड़ उत्पादकों व सरकार द्वारा संचालित चीनी मिलों में बेचा करते थे. चीनी मिल बंद होने के कारण किसानों ने अब गन्ना की खेती से भी मुंह मोड़ लिया है. स्वाभाविक रूप से यहां का गुड़ उद्योग भी ठप पड़ गया है. इससे जुड़े लोग बेरोजगार होकर अपना पुस्तैनी धंधा छोड़ दूसरे कामों से जुड़ते जा रहे हैं.
त्योहारों में भी बाहरी गुड़ का सहारा
छठ जैसा आस्था का महापर्व हो या अन्य कोई मांगलिक अवसर, इसके लिए भी लोगों को स्थानीय गुड़ नहीं मिल रहा है. लोग अब अन्य प्रदेश से आयातित गुड़ पर निर्भर हो गये हैं. वहीं क्रौसर संचालक राम प्रसाद साह, बौआ साह, नीलाम्बर यादव, राम आशीष साह आदि बताते हैं कि गुड़ उत्पादन हमलोगों का पुस्तैनी धंधा हुआ करता था. गुड़ उत्पादन से जहां क्षेत्र के किसानों का गन्ना स्थानीय स्तर पर बिक जाता था, वहीं उत्पादकों को भी अच्छी-खासी आमदनी होती थी, लेकिन चीनी मिल बंद होते ही अब गन्ने की खेती करना किसानों ने लगभग बंद कर दिया है. हालांकि प्रतिवर्ष कुछ न कुछ गन्ने की खेती कर अपनी पुस्तैनी पेशे को जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है. उसी गन्ने से क्रौसर का संचालन कर गुड़ बना अपने पुश्तैनी धंधे को जीवंत रखा है. सरकार न तो गन्ना उत्पादकों को कोई सहायता दे रही है और न ही गुड़ उत्पादन को गृह उद्योग का दर्जा ही प्रदान किया जा रहा है. परिणाम स्वरूप अब यहां के लोगों से गुड़ की मिठास दूर होती जा रही है. बीएओ सूरज कुमार ने बताया कि गन्ना उत्पादन के लिए उनके स्तर से योजना का प्रावधान नहीं है. विभागीय स्तर से जो योजनाएं बनाई जाती हैं, उसे धरातल पर उतारा जा रहा है.
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