पथ प्रदर्शिका एवं जीवन दर्शन की व्यावहारिक भाषा है संस्कृत
संस्कृत दिवस पर "मानव जीवन में संस्कृत की उपादेयता " विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया.
दरभंगा. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पीजी संस्कृत विभाग की ओर से संस्कृत दिवस पर “मानव जीवन में संस्कृत की उपादेयता ” विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया. विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में संस्कृत विश्वविद्यालय की साहित्य एवं व्याकरण संकायाध्यक्षा प्रो. रेणुका सिन्हा ने कहा कि संस्कृत हमारी पथ प्रदर्शिका एवं जीवन दर्शन की व्यावहारिक भाषा है. इसके अध्ययन- अध्यापन से मानव का जीवन सफल हो जाता है. संस्कृत मधुर, परिष्कृत तथा जीविकोपार्जन देने वाली भाषा है. प्रो. जीवानंद झा ने कहा कि संस्कृत संस्कारनिष्ठ, समुन्नत तथा प्राचीनतम भाषा है. इसकी महत्ता एवं वैज्ञानिकता को संसार के सभी विद्वान स्वीकारते हैं. इसमें मानव के चतुर्दिक विकास एवं परम कल्याण का भाव निहित है. कहा कि संस्कृत को खत्म करने के अनेक षड्यंत्र होते रहे, पर यह आज भी समाज की कल्याणकारी, इहलौकिक एवं पारलौकिक कल्याण की भाषा बनी हुई है. डॉ विद्यानाथ झा ने कहा कि यह एक वर्ग विशेष की भाषा नहीं, बल्कि भारत का प्राण है. इसपर सबका समान अधिकार है. संस्कृत में वर्णित विभिन्न न्यायों की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ दार्शनिकता ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिकता विद्यमान है. अमित कुमार झा ने कहा कि वाणिज्य एवं विज्ञान के छात्र भी एक वर्षीय संस्कृत डिप्लोमा कोर्स या दो वर्षीय पीजी कर प्राध्यापक आदि बन सकते हैं. संस्कृत संस्कार देने वाली साहित्यिक एवं आध्यात्मिक भाषा है. इसमें रोजी- रोजगार के नए- नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं. प्रेरणा नारायण ने कहा कि संस्कृत न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह विश्व के ज्ञान- विज्ञान एवं संस्कार- संस्कृति का भी अमूल्य हिस्सा है. संस्कृत अध्ययन में कमी से आ रही मानवीय मूल्यों में कमी डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि संस्कृत अध्ययन में कमी के कारण ही मानवीय मूल्यों में कमी आयी है. संस्कृत हमें नीति- निपुण तथा आचार्यवान बनाता है, जिससे संस्कृति सुदृढ़ होती है. ओम प्रकाश ने कहा कि संस्कृत राष्ट्रीय एकता की वाहक सरस एवं सरल भाषा है. डॉ आरएन चौरसिया ने कहा कि संस्कृत शब्दों के उच्चारण से शरीर के सभी महत्वपूर्ण ऊर्जा बिंदु झंकृत हो जाते हैं. इससे शरीर में नवीन ऊर्जा एवं आनंद का संचार होता है. डॉ नंदकिशोर ठाकुर ने संस्कृत में स्वागत गान प्रस्तुत किया. संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ ममता स्नेही ने की. कार्यक्रम में प्रो. प्रेम मोहन मिश्र, डॉ मधु कुमारी, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ बालकृष्ण सिंह, डॉ नारायण कुमार झा, नीरज कुमार सिंह, डॉ अंजू कुमारी, डॉ बालकृष्ण चौरसिया, प्रमोद साह, रीतु, सदानंद, दिनेश, मनीष, सुजय, दीपक, बालकृष्ण, संगम, गुलशन, प्रहलाद, अतुल, कामेश्वर, रतन, नीतीश, राकेश, संतोष तथा राघव झा आदि शामिल रहे.
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