अनावृष्टि ने बढ़ायी किसानों की चिंता
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परिचय-खेत में फटी दरारें दिखाते किसान धीरेंद्र कुमार.प्रतिनिधि, कमतौल.
मौसम की बेरुखी इस बार प्रखंडवासियों को ज्यादा ही परेशान कर रही है. अभी तक अच्छी बारिश नहीं होने से किसान चिंतित हैं. किसानों को डर सता रही है कि इस बार खेती कर ही न सकें. पिछले साल की तुलना में इस बार अभीतक न के बराबर बारिश हुई है. देर से ही सही, बारिश होने की उम्मीद में किसानों ने किसी तरह धान का बिचड़ा गिराया, परंतु अभीतक बारिश नहीं होने से बिचड़े झुलस रहे हैं. खेतों में दरारें फट गयी हैं. बिचड़ा बर्बाद होने के कगार पर है. उसे बचाने के लिए किसान दो-तीन दिन के अंतराल पर पटवन कर रहे हैं. हालांकि पटवन कर कितने दिनों तक बिचड़े को बचाए रखा जाएगा, यह बड़ा प्रश्न है. बेलबाड़ा के जोगिंदर चौपाल, हरिवंश दास, विजय दास, पचौरी दास, नरेंद्र कुमार सिंह, अमरनाथ राय, सुनैना देवी, वन्दना कुमारी, पंकज कुमार सिंह, दीप कुमार सिंह, चुनचुन राय आदि किसानों ने बताया कि धान का बिचड़ा तो किसी तरह पंपसेट से पटवन कर बचा लिया जायेगा, लेकिन आने वाले दिनों में बारिश नहीं हुई तो रोपनी कैसे हो पायेगी. किसानों के सामने यह विकराल समस्या है. पटवन कर धान का उत्पादन कर लेना उतना आसान नहीं है, जितना कहने में लगता है. धान की फसल के लिए बारिश का होना अत्यंत आवश्यक है.किसानों ने बताया कि प्री-मानसून बारिश से खेतों में नमी होने पर मूंग की फसल को नुकसान पहुंचा. उत्पादन कम होने से खेती घाटे का सौदा साबित हुआ. अब बारिश की कमी से धान की फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. कभी-कभी आसमान में बादल तो छाते हैं, लेकिन बारिश नहीं हो रही है. रोहिणी नक्षत्र में एक बूंद पानी नहीं बरसा. मृगशिरा नक्षत्र में एक दिन सिर्फ बूंदा-बांदी हुई, लेकिन वह किसानों की आवश्यकता से काफी कम थी. आसमान में बादल छाए रहने से किसानों को बारिश होने की आस बनती है, परंतु नहीं बरसने से किसानों के अरमानों पर पानी फिर जाता है. मानसून किसानों के आशा के अनुरूप अभीतक नहीं बरस पाया है. बारिश नहीं होने के कारण गर्मी भी चरम पर है. इससे आमलोग भी परेशान हैं. आद्रा नक्षत्र होने के बावजूद खेतों में फटी दरारें, मुरझाए पौधे व उड़ती धूल देख किसानों का कलेजा फट रहा है. आर्थिक रूप से संपन्न किसान खेतों की सिचाई पंप सेट से कर लेते हैं, लेकिन छोटे किसानों के लिए सिंचाई बड़ी समस्या है. उन्हें भगवान के भरोसे ही रहना पड़ता है.
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