दरभंगा. मखान ने दरभंगा सहित पूरी मिथिला को विश्व मानचित्र पर फिर से प्रतिष्ठित किया है. इस जलीय फसल में उत्तर बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने की पूरी क्षमता है. अब मखान की खेती तथा इसकी ग्लोबल मार्केटिंग के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया होगा. ये बातें सांसद गोपालजी ठाकुर ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक डॉ के नरसैया व राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार के साथ दरभंगा स्थित अपने आवास पर बैठक करने के बाद कही. बतौर सांसद डॉ नरसैया ने जानकारी दी कि मखाना एवं मखाना आधारित उत्पादों की बढ़ती मांग उत्तर बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकती है. मखाना की खेती एवं प्रसंस्करण में किसानों व उद्यमियों की बढ़ती रूचि, बेहतर आमदनी की सम्भावना, सकारात्मक नीति एवं राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा के शोध एवं प्रसार प्रयासों के कारण पिछले पांच वर्षों में इसकी खेती का विस्तार तेजी से हुआ है. पांच वर्ष पहले तक मखान की खेती लगभग 15 हजार हेक्टेयर में होती थी जो अब 30 से 35 हजार हेक्टेयर में होती है. दरभंगा में मखाना की खेती से एक लाख रुपए प्रति हेक्टेयर से तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की आमदनी देखी गई है. दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र को राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होने से संस्थान में शोध के लिए जरूरी आधारभूत संरचनाओं का विकास तेज हुआ है. मिथिला के किसानों व उद्यमियों के साथ पूरे देश में मखाना के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से आगामी 17 अक्तूबर को स्थानीय अनुसंधान केंद्र में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन होना है. आश्विन शुक्ल पूर्णिमा कोजागरा के दिन हर साल राष्ट्रीय मखाना दिवस मनाया जायेगा.
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