जाले. रतनपुर स्थित श्रीचैतन्य कुटी परिसर में कुंजबिहारी रासलीला मंडली की ओर से बुधवार की रात काले खां की लीला का मंचन किया गया. इसके माध्यम से बताया गया कि वृंदावन अवस्थित मदन मोहन मंदिर था, जो बाद में जयपुर एवं उसके बाद करौली पहुंच गया. करौली में काले खां नाम का एक सफाई कर्मी रहता था. वह देखता था कि मंदिर में बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग आते-जाते हैं. काले खां भी भेष बदलकर मंदिर जाने लगा. एक दिन मंदिर की व्यवस्था में लगे पुजारियों ने उसे पहचान लिया और उसकी पिटाई कर दी, फिर भी वह मदन मोहन का दीवाना बना रहा. वह मंदिर में मदन मोहन का दर्शन कर उनका मुरीद बन जाता है. काले खां घर त्याग देता है. घर वाले भी उसे त्याग देते हैं. जब उसे भूख लगती है तो पुकारने पर स्वयं मदन मोहन अपने भोग की थाली लेकर काले खां को खिला देते हैं. एक दिन काले खां के एकमात्र पुत्र को सांप काट लेता है और उसकी मौत हो जाती है. उसके घर वाले उसे लेकर काले खां के पास पहुंच जाते हैं. पुत्र का शव उसके सामने रख देते हैं. काले खां मदन मोहन को याद करता है. मदन मोहन वहां पहुंच जाते हैं. मदन मोहन की कृपा से उसका पुत्र जीवित हो जाता है. इसके बाद काले खां का पूरा परिवार मदन मोहन का कायल हो जाता है और भक्तिभाव से झूमने लगता है.
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