Darbhanga News: दरभंगा. महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के संग्रहालयाध्यक्ष डॉ शंकर सुमन की अध्यक्षता में “पुरावशेष एवं कलाकृति : इतिहास निर्माण के प्रमुख स्रोत ” विषय पर संगोष्ठी हुई. विषय प्रवेश कराते हुए डॉ सुमन ने कहा कि अध्ययन की दृष्टि से पुरातात्विक स्रोत सबसे प्रमुख है. इसमें कल्पना का कोई स्थान नहीं होता है. 100 वर्ष से अधिक पुरानी हर एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्राकृतिक महत्व की वैसी वस्तुएं, जो मानव द्वारा उपयोग में लायी गयी हो, पुरातात्विक स्रोत है.
अन्वेषण एवं विश्लेषण की बुनियाद पर टिका रहता इतिहास
डॉ भास्कर नाथ ठाकुर ने कहा कि इतिहास का अध्ययन अन्वेषण एवं विश्लेषण की बुनियाद पर टिकी रहती है. हमारी लोक संस्कृति भी इतिहास निर्माण की प्रमुख पारंपरिक स्रोत है. प्रो. प्रभास रंजन मिश्र ने कहा कि महाराजाधिराज मिथिला के आधुनिक इतिहास के महामानव थे. इतिहास निर्माण में साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों ही स्रोतों का प्रमुख योगदान है. जहां साहित्यिक स्रोत मौन हो जाता है, वहां पुरातात्विक स्रोत मानवीय अवधारणाओं, सांस्कृतिक विविधताओं आदि की विस्तृत जानकारी देता है. डॉ अमिताभ कुमार ने कहा कि इतिहास के स्रोत के रूप में पुरातात्विक अध्ययन हेतु पुरास्थलों का उत्खनन सबसे आवश्यक होता है. डॉ अखिलेश कुमार विभु ने कहा कि मिथिला शक्तियों की भूमि रही है. ऐतिहासिक स्रोत को समझे बिना इतिहास का अध्ययन संभव नहीं है.
पुरातात्विक अध्ययन में सर्वेक्षण का बहुत अधिक महत्व
शोधार्थी मुरारी कुमार झा ने कहा कि पुरातात्विक अध्ययन में सर्वेक्षण का बहुत अधिक महत्व है. प्राचीन स्थलों के अध्ययन के दो प्रमुख तरीके हैं, अन्वेषण एवं उत्खनन. पुरातात्विक अन्वेषण अध्ययन करने की, करो और सीखो पद्धति है. इस दौरान गिरिंद्र मोहन ठाकुर, पूर्णिमा कुमारी, पुष्पांजलि कुमारी, सोनी कुमारी, कंचन कुमारी, आयशा जमाल, शाहाना खातून, रिया कुमारी, शुभरंजन, कोमल कुमारी, श्रवण कुमार, शैलेंद्र कुमार, अभिषेक आनंद, आयुष कुमार, रौनक कुमार मिश्र, कुमारी पलक आदि शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं ने आलेख प्रस्तुत किये.
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