Darbhanga News: मखान उत्पादकों की जिंदगी से निकलने लगे नुकसान के कांटे, सालों बाद चेहरे पर लौटी मुस्कान
Darbhanga News:इस बार उम्मीद से कहीं अधिक कीमत में आयी उछाल से मखान उत्पादकों के मुरझाए रहनेवाले चेहरे पर नुकसान आने लगी है.
Darbhanga News: सुबोध नारायण पाठक, बेनीपुर. मखान उत्पादन के लिए सदियों से प्रसिद्ध मिथिला के उत्पादकों की जिंदगी से धीरे-धीरे नुकसान के कांटे निकलने शुरू हो गये हैं. इस बार उम्मीद से कहीं अधिक कीमत में आयी उछाल से मखान उत्पादकों के मुरझाए रहनेवाले चेहरे पर नुकसान आने लगी है. वहीं ठीक इसके विपरीत स्थानीय लोगों से इसकी मिठास अब दूर होने लगी है. इसकी वजह मिथिला के मखान का देश के विभिन्न हिस्सों सहित विदेश तक संस्थागत निर्यात की गति तेज होना माना जा रहा है. वैसे 21वीं सदी में भी किसान अपने परंपरागत तरीके से ही मखान का उत्पादन कर रहे हैं. खेती के लिए पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भरता व बाजार भाव को लेकर मखान उत्पादक के हिस्से कांटे ही कांटे आते थे, परंतु इस बार मौसम की बेरुखी के बावजूद मखान के भाव में ढाई गुना से अधिक उछाल से उत्पादक की माली हालत में सुधार होने की उम्मीद जगी है. इतना ही नहीं, इस बार मखान की खेती से हुए मुनाफे से अब नई पीढ़ी जिसने अपनी पुस्तैनी पेशा से मुंह मोड़ ली थी, उनका भी पुनः इस ओर झुकाव होने की उम्मीद जगी है. मखान उत्पादकों का कहना है कि सरकार द्वारा मखान की खेती को दिये जा रहे बढ़ावा का लाभ धीरे-धीरे दिखने लगा है. मिथिला की ह्रदयस्थली दरभंगा में मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थापना, मिथिला मखान का जिओ टैग का असर इस बार बाजार में दिख रहा है. चनौर के मखान उत्पादक बिल्टू सहनी कहते हैं कि पिछले साल तक तैयार लावा बेचने के लिए महानगर के महाजनों की दरबारी करनी पड़ती थी. मखान बिकता नहीं था, लेकिन इसबार तो महाजन ही मखान के लावा की तैयारी में जुटे हैं. इन्द्रप्रस्थ के किसान दिलीप सहनी व उनकी पत्नी मंजू देवी बताती हैं कि मखान जितना मीठा होता है, उसका लावा तैयार करना उतना ही कठिन होता है. परिश्रम के हिसाब से बहुत अधिक फायदा इस बार भी नहीं है. यदि ऐसा रहा तो आनेवाले समय में उत्पादक मालामाल हो जायेंगे. किसान बिहारी मुखिया, मोहन मुखिया, राजू मुखिया आदि ने बताया कि सरकार मखान की खेती को बढ़ावा देने के लिए जितने प्रयास कर रही है, वह यदि मखान उत्पादकों तक पहुंच जाये तो निश्चित रूप से मिथिला मखान उत्पादन में देश ही नहीं विदेशों में अपना परचम लहराएगा.
पिछले साल उत्पादकों को हुआ था नुकसान
पिछले साल मखान की कीमत कम रहने के कारण उत्पादकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था. पिछली बार पांच सौ से छह सौ रुपये किलो खुदरा भाव में मखान बिकता था, लेकिन इस बार अभी ही यह 14 सौ से 15 सौ रुपए किलो बिक रहा है. इससे इस बार ऐसा लग रहा है कि हम उत्पादकों के माथे पर चढ़े कर्ज का बोझ जरूर कुछ हल्का होगा. हालांकि इस बार भी प्रकृति का साथ नहीं मिला, फिर भी मेहनत के बल पर अच्छा उत्पादन हुआ. उनलोगों कि कहना है कि यदि सरकार इसे उद्योग का दर्जा देकर किसानों को बैंक से केसीसी के तर्ज पर लोन उपलब्ध कराये तथा धान-गेहूं की तरह मखान क्रय केंद्र प्रखंड स्तर पर स्थापित कर समुचित सहायता प्रदान करें तो निश्चित रूप से मिथिला मखान उत्पादन में देश में अव्वल रहेगा. इस संबंध में बीएओ सूर्य कुमार ने बताया कि प्रखंड स्तर पर इसका कोई जानकारी उन्हें नहीं है.
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