मनुष्य बनाना गुरु का परम कर्तव्य : कुलपति
गुरु-शिष्य परंपरा भारतीयता के मौलिक दर्शन की नींव रही है.
दरभंगा. गुरु-शिष्य परंपरा भारतीयता के मौलिक दर्शन की नींव रही है. गुरु महान होते हैं और उनकी भूमिका भी बड़ी होती है. केवल धन अर्जन या फिर जीविका के साधनों का ज्ञान देना ही गुरु का कार्य नहीं है बल्कि शिष्यों को मनुष्य बनाना ही गुरु का परम कर्तव्य है. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में रविवार को आयोजित गुरु-शिष्य परम्परा उत्सव कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने ये बातें कही. उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ गुरु वे नहीं हैं जो केवल ज्ञानवान होते हैं, बल्कि जो अपनी विद्वता व अनुभव का बेहतर लाभ शिष्यों तक पहुंचते हैं वे ही सर्वोत्तम गुरु हैं. विशिष्ट व्याख्यान देते हुए पूर्व कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने शास्त्रों में वर्णित गुरु-शिष्य परम्परा को विस्तार से रखा. कहा कि गुरु के बिना कोई भी शिक्षित नहीं हो सकता है. गुरु के कारण ही आज हम व्याकरणाचार्य हैं, कोई ज्योतिषाचार्य हैं. बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी किसी न किसी गुरु की ही देन हैं. उपनिषदों के हवाले से उन्होंने बताया कि गुरु देवता के समान होते हैं. मौके पर प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि वेदों में ज्ञान की सम्पूर्णता ही पूर्णिमा कहलाती है. इसी ज्ञान व विद्या को जब गुरु अपने शिष्यों में उतार देता है तो वे महान हो जाते हैं. विद्या प्राप्ति से जीवन को मोक्ष मिलता है. डॉ एल सविता आर्य के संचालन में कुलगीत डॉ साधना शर्मा ने प्रस्तुत किया. डॉ यदुवीर स्वरूप शास्त्री ने स्वागत भाषण एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ अवधेश कुमार श्रोत्रिय ने किया. डीन डॉ शिवलोचन झा के मार्ग निर्देशन तथा डॉ सन्तोष कुमार तिवारी व डॉ ध्रुव मिश्र के संयुक्त संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष, पदाधिकारी व कर्मी उपस्थित थे.
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