Darbhanga News: भारतीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई परंपरा के बीच सेतु हैं मोग्गल्लान
Darbhanga News:मारवाड़ी कॉलेज में संस्कृत विभाग की ओर से बुधवार को भारतीय व्याकरण परंपरा में मोग्गल्लान का योगदान विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान हुआ.
Darbhanga News: दरभंगा. मारवाड़ी कॉलेज में संस्कृत विभाग की ओर से बुधवार को भारतीय व्याकरण परंपरा में मोग्गल्लान का योगदान विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान हुआ. इसमें म्यांमार के यांगून स्थित सितागु बौद्ध विश्वविद्यालय, थनलिन के प्राध्यापक वेनरेवल पंडित ने कहा कि भारतीय व्याकरण परंपरा में पाली धारा के प्रमुख स्तंभ मोग्गल्लान हैं. उन्होंने श्रीलंका में जन्में मोग्गल्लान के व्याकरणीय सिद्धांतों की विशिष्टता, पालि और संस्कृत व्याकरण पर गहरे प्रभाव के बारे में बताया. कहा कि वेनरेवल पंडित मोग्गल्लान भारतीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई परंपरा के बीच सेतु हैं. अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ विनोद बैठा ने कहा कि मोग्गल्लान की विद्वतापूर्ण विरासत और भारतीय व्याकरणीय परंपरा पर उनके प्रभाव की प्रासंगिकता विद्वानों को प्रभावित करती है. वेनरेवल पंडित ने बर्मी भाषा में व्याख्यान दिया, जिसका हिंदी में आशु अनुवाद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पीएचडी शोधार्थी रामचंद्र ने किया.
तैयार किया पाली का व्याकरण- डॉ विकास
संयोजक डॉ विकास सिंह ने कहा कि भले ही मोग्गलान का जन्म 12वीं शताब्दी में श्रीलंका में हुआ था, किंतु उनके प्राण भारत में बसते थे. उन्होंने पाली त्रिपिटकों की भाषा को सरल और सुलभ बनाने के उद्देश्य से पाली का व्याकरण तैयार किया, जिसे परवर्ती काल में मोग्गल्लान व्याकरण के नाम से प्रसिद्धि मिली. उनके कार्य को नव नालंदा महाविहार के संस्थापक भिक्खु जगदीस कस्सप ने आगे बढ़ाया. डॉ अनुरुद्ध सिंह ने कहा कि भारत की व्याकरण परंपरा आचार्य मोग्गल्लान को सदैव स्मरण करता रहेगा. धन्यवाद ज्ञापन डॉ शकील अख्तर ने किया. व्याख्यान में सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रो. रमेश प्रसाद, दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ राजेंद्र कुमार, हिमाचल प्रदेश से डॉ सतीश कुमार, श्रीलंका से डॉ सामंथा इल्न्गाकून, थाइलैंड से भंते दीपरतन, डॉ अवधेश प्रसाद यादव, डॉ रवि कुमार राम, डॉ प्रिया नंदन, डॉ बीडी मोची शामिल हुये.
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