Darbhanga News: अक्षर-साधक मिथिला में घर-घर हुई विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा
Darbhanga News:विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना माघ कृष्ण पंचमी तिथि पर सोमवार को धूमधाम से की गयी.
Darbhanga News: दरभंगा. विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना माघ कृष्ण पंचमी तिथि पर सोमवार को धूमधाम से की गयी. शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक पूजा पंडालों के अतिरिक्त अधिकांश श्रद्धालु परिवार में भगवती की प्रतिमा स्थापित कर विधानपूर्वक पूजन किया गया. हंस पर विराजित भगवती सरस्वती की प्रतिमा को पूजन स्थल पर स्थापित कर सर्वप्रथम विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा की गयी. अक्षत, चंदन, रोली, फूल, बेलपत्र आदि के साथ षोडशोपचार विधि से पूजा की गयी. बेर, केसौर, गाजर, अंगूर, बुंदिया आदि का प्रसाद भोग लगाया गया. नए वस्त्र एवं शृंगार प्रसाधन की सामग्री अर्पित की गयी. माता की आरती उतारी गयी. इसके बाद प्रसाद वितरण हुआ. अपने घर में पूजन से निवृत्त होने के बाद टोली बनाकर लोग जगह-जगह प्रतिमा का दर्शन-पूजन करने के लिए निकल पड़े. माता का आशीर्वाद लिया एवं प्रसाद ग्रहण किया. इसे लेकर पूजा पंडाल विशेषकर पूरे दिन गुलजार रहे. सड़क पर कतार सी लगी रही. आकर्षक परिधान में बच्चों, वृद्ध, नौजवान एवं महिलाएं अलग-अलग टोलियों में पहुंचती रही. पूजा समिति के सदस्य प्रसाद वितरण सहित भीड़ नियंत्रण में जुटे रहे. इधर वातावरण में भक्ति गीतों के बोल मिठास घोलते रहे. इसे लेकर आइंस्टीन छात्रावास, पीजी हॉस्टल, तारालाही स्थित जीएन इंग्लिश स्कूल, प्रभात तारा पब्लिक स्कूल पंडासराय, श्री शारदा इंस्टीच्यूट हाउंसिंग बोर्ड, बेता स्थित सेंट थॉमस स्कूल, ज्ञान ज्योति स्कूल ऑफ नर्सिंग सहित विभिन्न स्कूलों एवं कोचिंग संस्थानों के साथ मोहल्ले में स्थापित माता की प्रतिमा के समक्ष अपनी श्रद्धा निवेदित करने के लिए भक्तों की कतार देर रात तक लगी रही. दरभंगा मेडिकल कॉलेज में भव्य प्रतिमा स्थापित कर इस वर्ष भी परंपरा के अनुरूप पूजा-अर्चना की गयी. मंगलवार को प्रतिमा विसर्जन के साथ यह पूजन संपन्न होगा. इधर, प्राचीन परंपरा के अनुसार भगवती सरस्वती के चरण में अबीर अर्पण के साथ गुलाल उड़ने लगे हैं. वसंत पंचमी के दिन श्रद्धालुओं ने अपने भाल पर गुलाल के टीके लगाए. दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में होली गायन भी आरंभ हो गया. यहां बता दें कि मिथिला में वसंत पंचमी के दिन से ही रंग-गुलाल खेलने का सिलसिला आरंभ हो जाता है, जो होली के दिन तक चलता रहता है. इस अवधि में होली गायन की भी प्राचीन एवं समृद्ध परंपरा रही है. यह सही है कि अब इस परंपरा की डोर कमजोर पड़ती जा रही है, लेकिन अभी भी विशेष कर ग्रामीण इलाकों में कई स्थानों पर होली गायन की इस परंपरा की कड़ी बरकरार है.
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