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Darbhanga News: पर्यावरण को नहीं बचाया तो मानव सभ्यता का विनाश तय

Darbhanga News:पर्यावरण को नहीं बचाया गया तो मानवीय सभ्यता विनाश तय है. यह बात जेएनयू में प्रौढ़ शिक्षा समूह के निदेशक कौशल शर्मा ने कही.

Darbhanga News: दरभंगा. पर्यावरण को नहीं बचाया गया तो मानवीय सभ्यता विनाश तय है. यह बात जेएनयू में प्रौढ़ शिक्षा समूह के निदेशक कौशल शर्मा ने कही. वे शनिवार को यहां चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन समावेशी विकास और पर्यावरण संरक्षण विषय पर आयोजित विमर्श गोष्ठी में मुख्य वक्ता की हैसियत से बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि जब तक समाज अपनी जिम्मेदारियां को खुद नहीं संभालेगा तब तक न समावेशी विकास संभव है और न ही पर्यावरण की सुरक्षा. उन्होंने कहा कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं, यह प्रत्येक व्यक्ति को सोचने की जरूरत है. समाज का संगठित प्रयास इसके लिए होगा, तभी इसे साकार किया जा सकता है. हम और सभी जीव प्रकृति से ही आए हैं. हमारे जीवन के लिए प्रकृति की जरूरत है. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के अभाव में दूषित जल, बंजर धरती तथा प्रदूषित हवा को गंभीर खतरा बताया. उन्होंने कहा कि हमने धरती में जहर घोल दिया है, जिसके कारण भूमि खेती योग्य बची ही कहां है. पेड़ों को लगाने भर से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसे बचाने की भी जरूरत है. पर्यावरण को लेकर व्यापारिक दृष्टिकोण में भी बदलाव लाने की जरूरत है. यह सिर्फ सरकार या प्रशासन के भरोसे कदापि संभव नहीं है. इस अवसर पर बोलते हुए पर्यावरण विद् जितेंद्र कुमार मिश्र ने कहा कि तालाबों के नीचे गाद जमा हो गया है. प्लास्टिक एक बहुत बड़ी समस्या है. इसका निदान करने के उपरांत ही जल के प्रदूषण को दूर किया जा सकता है. कचरा निस्तारण की भी उन्होंने जरूरत बताई. उन्होंने कहा कि 1970 के दशक में प्रति व्यक्ति करीब 260 ग्राम प्रतिदिन कचरा की उत्पादकता थी, जो बढ़कर 850 ग्राम हो गई है. वन क्षेत्र भी घटते चले जा रहे हैं. 1990 में दरभंगा में सघन वन क्षेत्र 10.94% था, जो आज घटकर 8.74 प्रतिशत रह गया है. उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से किए जा रहे प्रयासों की भी चर्चा की तथा जुड़शीतल सरीखे पर्वों को मूल अर्थ में अपनाने पर जोर दिया. कृषि विशेषज्ञ रत्नेश झा ने भू-जल संरक्षण पर जोर दिया. कहा कि भू-जल का स्तर गिरने के पीछे भी जल प्रदूषण है. अध्यक्षता करते हुए दरभंगा अभियंत्रण महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. संदीप तिवारी ने आध्यात्मिक चेतना पर बल देते हुए कहा कि प्रकृति हमें अच्छा रखती है हम भी प्रकृति को अच्छा रखें. उन्होंने चलो गांव की ओर को साकार करने की आवश्यकता जताई. प्रश्नोत्तरी के कार्यक्रम में प्रो. अजीत कुमार चौधरी ने जनजागृति की आवश्यकता पर जोर दिया.

साहित्य व पत्रकारिता ने राष्ट्रवाद को किया मुखर

दरभंगा. चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन साहित्य और पत्रकारिता में भारतीय चिंतन विषय पर आयोजित विमर्श गोष्ठी की अध्यक्षता इतिहासकार डॉ अयोध्यानाथ झा ने की. उन्होंने भारतीय दर्शन में मिथिला के अवदान पर विशद चर्चा की. मुख्य वक्ता के तौर पर बीएससी के सदस्य प्रो. अरुण भगत ने संस्कृत साहित्य के साथ ही हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना पर विमर्श रखा और अनेक उदाहरण देकर यह पुष्ट किया कि संस्कृत और हिंदी में राष्ट्र जागरण संबंधी विमर्शों की भरमार है. वहीं अवनीश कुमार के समन्वय में संपन्न गोष्ठी में साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ अमलेन्दु शेखर पाठक ने कहा कि राष्ट्रवाद को प्रखर-मुखर करने में साहित्य व पत्रकारिता का महत योगदान रहा है. अपने विमर्श को मैथिली पर केंद्रित करते हुए उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य में राष्ट्र के प्रति स्व के जागरण में साहित्यकारों की प्रमुख भूमिका रही है. मिथिला को भारत की लघु प्रतिमा मानने वाले आचार्य सुरेंद्र झा सुमन सहित दीनानाथ पाठक बंधु की महती भूमिका रही है. उन्होंने बंधु के महाकाव्य चाणक्य से अनेक उदाहरण रखते हुए इसे पुष्ट भी किया. डॉ पाठक ने मैथिली गीतांजलि, विजय शंख, स्वतंत्र्यस्वर मैथिली सरीखे काव्य-संग्रह के माध्यम से राष्ट्र जागरण के मुखर स्वर को सहज जाने की जानकारी दी. साथ ही मार्कण्डेय प्रवासी के महाकाव्य अगस्त्यानी को उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच भेद की दीवार को गिराकर राष्ट्रीय एकता-अखंडता को स्थापित करने वाला बताया. ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म, आरसी प्रसाद सिंह, चंद्रभानु सिंह, श्रीमंत पाठक, ध्वंस-पर्व के रचयिता शिवाकांत पाठक आदि का जिक्र राष्ट्रीय चेतना के उद्बोधन में करते हुए पाठक ने राष्ट्रवाद को प्रखर-मुखर करने में पत्रकारिता की भूमिका को भी रेखांकित किया. हिंदी पत्रों के साथ ही मैथिली की पत्रिका बागमती को राष्ट्रवाद को मुख्यधारा रखनेवाली बताया. उन्होंने कहा कि मिथिला मिहिर, स्वदेश सरीखी पत्र-पत्रिकाएं समय-समय पर राष्ट्रीय चेतना का जागरण करने वाली रचनाओं का प्रकाशन करती रही हैं.

अध्यात्म व विज्ञान में संतुलन जरूरी : कुलपति

दरभंगा. आध्यात्मिक चिंतन नई दिशा और दृष्टि देने में समर्थ है. वहीं विज्ञान इसका प्रायोगिक स्वरूप है. दोनों में संतुलन आवश्यक है, क्योंकि बिना दृष्टि या दिशा के विज्ञान विनाशक भी हो सकता है. ये बातें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ लक्ष्मी निवास पांडेय ने कही. वे चाणक्य मंडप में अध्यात्म की वैज्ञानिकता विषय पर आयोजित विमर्श गोष्ठी में अध्यक्ष पद से बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि अध्यात्म जीवन में संतुलन बनाए रखता है. जीवात्मा से परमात्मा तक का संबंध बनाए रखने में यह समर्थ है. यह ब्रह्मनिष्ठा बनता है जो संपूर्ण सृष्टि के बारे में विचार करता है. कुलपति ने अध्यात्म के आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक चिंतन पर विस्तार से विचार रखते हुए कहा कि जिस तरह विरासत के साथ विकास की परिकल्पना को साकार किया जा रहा है, इसी तरह आवश्यकता है आध्यात्मिक और विज्ञान के बीच समन्वय और संतुलन बनाकर आगे कदम बढ़ाए जाएं. इस मौके पर डॉ स्मिता सिंह ने कहा कि विविध प्रकार में दिखने वाला अध्यात्म और विज्ञान का अस्तित्व सह अस्तित्व का है. उन्होंने महिला-प्रताड़ना के लिए हिंदू जीवन पद्धति को दोषपूर्ण बताए जाने को दुखद बताया. उन्होंने कहा कि यह हिंदू जीवन पद्धति से विमुखता का दुष्परिणाम है. नारी-पुरुष के बीच सह अस्तित्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पाश्चात्य की चौखट अधूरी है, हमारी पूरी है. डॉ सोनू राम शंकर के समन्वय में संपन्न इस सत्र में शशांक दत्तात्रेय कुलकर्णी ने कहा कि प्रकृति से हम उतना ही लें जितनी जरूरत है. हम दोहन करें शोषण नहीं. अपने भीतर ईश्वरत्व को जगाने को उन्होंने आध्यात्मिक बताया और कहा कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही मानव कल्याण के लिए हैं. इनमें समन्वय बनाकर आगे कदम बढ़ाने से ही हम एक सुखद वर्तमान गढ़ सकते हैं, जो सुनहरे भविष्य की और हमें ले जाने में सक्षम होगा.

मिथिला की ऐतिहासिक ज्ञान परंपरा पर हुआ विमर्श

दरभंगा. चंद्रगुप्त महोत्सव के दूसरे दिन लोक साहित्य कला एवं संस्कृति में एकात्मबोध विषय पर प्रो. कृष्णानंद मिश्र के समन्वय में विमर्श किया गया. इसकी अध्यक्षता देवव्रत प्रसाद ने की. वहीं मुख्य वक्ता डॉ भास्कर ज्योति और वक्ता के रूप में अशोक ज्योति ने अपने विचार रखे. मिथिला की ऐतिहासिक ज्ञान परंपरा पर विमर्श डॉ शशिनाथ झा की अध्यक्षता में हुआ. इसमें संजीव सिंह ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखे. संजीव कुमार के समन्वय में संपन्न इस विमर्श गोष्ठी में प्रो. वंदना झा ने भी अपने विचार रखे. शाम में कवि-गोष्ठी एवं नृत्य-संगीत का कार्यक्रम खबर लिखे जाने तक जारी था.

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