प्रसूतियों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण हृदय रोग
2030 तक मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) को 103 से घटाकर 70 प्रति लाख करने का लक्ष्य निर्धारित है.
दरभंगा. 2030 तक मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) को 103 से घटाकर 70 प्रति लाख करने का लक्ष्य निर्धारित है. मातृ मृत्यु के कारणों में रक्तस्राव, संक्रमण, प्रसव के रास्ते में रुकावट एवं उच्च रक्तचाप शामिल है. इसके कारण होने वाले रोग में चमकी प्रमुख है. प्रसूति रोग विशेषज्ञों के सतत प्रयासों से इन कारणों से होने वाली मातृ मृत्यु में बड़ी कमी आई है. यह बातें डीएमसीएच के शिशु विभाग के पूर्व चिकित्सक डॉ ओम प्रकाश ने स्त्री एवं प्रस्तुति रोग फेडरेशन द्वारा स्थानीय सभागार में आयोजित परिचर्चा में कही. डॉ प्रकाश ने कहा कि प्रसूतियों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण हृदय रोग है. प्रो. शीला कुमारी ने कहा कि गर्भस्थ शिशु के पोषण के लिए मां के शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ती है. इसके कारण हृदय को ज्यादा काम करना पड़ता है. शिशु को सही से खून मिल सके, इसलिए उसकी रक्त वाहिकाओं में कम दबाव पर रक्त का प्रवाह होना जरूरी होता है. प्रकृति ने औरत को ऐसा बनाया है, कि गर्भावस्था के इन परिवर्तनों को कम दबाव के साथ वह सहन कर लेती है. डॉ प्रशांत कृष्ण गुप्ता ने कहा कि हृदय रोग के कारण प्रसूता का सामान्य जीवन विभिन्न स्तरों पर प्रभावित हो सकता है. कहा कि डब्ल्यूएचओ द्वारा किये गए वर्गीकरण के अनुसार गर्भावस्था के दौरान देखभाल व चिकित्सकों की निगरानी में प्रसव कराने से मृत्यु का खतरा कम किया जा सकता है. डॉ राजश्री पूर्वे ने कहा कि अन्य लोगों की तरह स्त्रियों में भी हृदय रोग जन्मजात हो सकता है, परंतु ब्लड प्रेशर और हृदय के वाल्व और मांसपेशियों की गड़बड़ी के कारण भी यह होता है. पैनलिस्ट डॉ अलका मिश्रा के अनुसार हृदय रोग के कारण गर्भवती महिला को अत्यधिक थकावट, दम फूलने, सीने में दर्द, खखार में खून या अचानक चक्कर आ जाने की शिकायत हो सकती है. मौके पर डॉ कुमुदिनी झा, डॉ भरत प्रसाद, डॉ नूतन बाला सिंह, डॉ नूतन राय, डॉ रेनू झा, डॉ वसुधा रानी, डॉ शिल्पी सिंह, डॉ शिल्पा कुमारी, डॉ जमुरत आदि मौजूद थे.
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