Darbhanga News: प्रो. हरिमोहन झा की रचनाओं के आस्वादन के लिए लोग सीखते थे मैथिली भाषा

Darbhanga News:लनामिवि के पीजी मैथिली विभाग में साहित्यकार हरिमोहन झा की जयंती मनाई गई. विभागाध्यक्ष प्रो. दमन कुमार झा ने कहा कि मैथिली साहित्य के सर्वाधिक पठनीय साहित्यकारों में प्रो. हरिमोहन झा का नाम प्रमुख है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 18, 2024 11:07 PM

Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी मैथिली विभाग में साहित्यकार हरिमोहन झा की जयंती मनाई गई. विभागाध्यक्ष प्रो. दमन कुमार झा ने कहा कि मैथिली साहित्य के सर्वाधिक पठनीय साहित्यकारों में प्रो. हरिमोहन झा का नाम प्रमुख है. कन्यादान हो या दुरागमन, प्रणम्य देवता हो या रंगशाला, चर्चरी हो या एकादशी, खट्टर ककाक तरंग हो या जीवन-यात्रा, इन सभी पुस्तकों के साथ हरिमोहन बाबू आज भी पाठकों के बीच जीवंत हैं. हरिमोहन झा की लोकप्रियता का आलम यह है, कि उनकी रचनाओं के आस्वादन के लिए लोग मैथिली भाषा सीखते थे. कहा कि तत्कालीन मैथिल समाज को अपनी लेखनी के माध्यम से साक्षात कराने वाले एक मात्र चर्चित और लोकप्रिय लेखक हरिमोहन झा ही हैं. प्रो. झा ने कहा की हरिमोहन झा को मैथिल समाज की बारीक समझ थी. उनका संपूर्ण साहित्य मिथिला के लोक बिंब से उपजा है. उनके एक-एक पात्र व चित्र यथार्थ और लोक जीवन की जीवंतता के साथ उकेरे गए हैं. हास्य की फुलझरी से भींगो कर व्यंग्य की तीक्ष्ण बाण से सतत सतर्क करने का कार्य प्रो हरिमोहन झा ने किया है.

मैथिली साहित्य में कथा व उपन्यास लेखन शैली में लाया क्रांति- प्रो. मेहता

प्रो. अशोक कुमार मेहता ने कहा कि वे दर्शनशास्त्र के विद्वान थे, लेकिन मैथिली गद्य साहित्य के मजबूत स्तम्भ रहे. उनकी सर्जन-यात्रा ने मैथिली गद्य साहित्य के इतिहास में क्रांति लाने का कार्य किया. इनसे पूर्व कथा, उपन्यास लिखने की परंपरा थी, किन्तु उनमें वह बात नहीं थी, जो खासियत हरिमोहन झा के साहित्य में मिलती है. हरिमोहन झा ने कथा उपन्यास की लेखन -दृष्टि को बदला. वर्णनात्मक शैली में की गई रचना उनकी विलक्षणता का द्योतक है. इनसे पहले इस शैली में लिखने वाले न के बराबर थे. इन्हें मैथिली साहित्य में कथा व उपन्यास लेखन शैली में क्रांति लाने का श्रेय जाता है.

उनकी लेखन दृष्टि को जीवन में उतारने की आवश्यकता- डॉ अभिलाषा

डॉ अभिलाषा कुमारी ने कहा कि प्रो. झा ने जो कुछ लिखा, वह आज के परिप्रेक्ष्य में भी प्रासंगिक है. ऐसे विरल साहित्यकार को केवल एक दिन स्मरण कर लेने से हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते हैं, उनकी लेखन दृष्टि को सतत अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है. डॉ सुनीता ने हरिमोहन झा के कृतित्व की चर्चा की. डॉ सुरेश पासवान ने कहा कि शोध की कई संभावनाओं की तलाश इनके साहित्य में है. शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को उनके साहित्य को पढ़ना चाहिए. लाभप्रद होगा. शालिनी, गुंजन कुमारी, भोगेंद्र प्रसाद, शिवम कुमार, नेहा, वंदना, मिथलेश, राजनाथ, शीला कुमारी, हरेराम ने भी विचार रखा.

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