दरभंगा. यात्री-नागार्जुन विपक्ष के कवि थे. वे वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को आजीवन समृद्ध करते रहे. जनहित के विरुद्ध काम करने वालों को कभी नहीं बख्शा. चाहे वे सत्ता पक्ष के हों, विपक्ष के हों अथवा उनके अपने वाम पक्ष के ही क्यों न हो. यह बातें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने मंगलवार को जनकवि बाबा यात्री-नागार्जुन की 113वीं जयंती पर विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में कही. कुलपति ने पुराने साहित्यकारों को विस्मृत किए जाने पर चिंता जाहिर की. कहा कि बाबा नागार्जुन समतामूलक समाज निर्माण के प्रबल समर्थक थे. विडंबना है कि उनके बाद किसी ने इस दिशा में सार्थक काम नहीं किया. इससे पहले मिथिला विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय परिसर में स्थापित बाबा की प्रतिमा पर फूल-माला अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. लनामिवि के कॉलेज निरीक्षक वाणिज्य एवं कला प्रो. अशोक कुमार मेहता ने कहा कि यात्री-नागार्जुन वास्तव में जनता की व्यापक राजनीतिक आकांक्षा से जुड़े विलक्षण कवि थे. उनका विभिन्न भाषा पर गजब का अधिकार था. उनकी रचनाओं में देसी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक भाषा के अनेक स्तर थे. यही कारण रहा कि मैथिली के अतिरिक्त हिन्दी, बंगला और संस्कृत में आम जन की आकांक्षाओं के पात्रों को केंद्र में रखकर उन्होंने बहुत कुछ अलग से लिखा. विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि यात्री-नागार्जुन ने आमजन के मुक्ति संघर्ष में रचनात्मक हिस्सेदारी दी. स्वयं भी जन संघर्षों में आजीवन सक्रिय रहे. नागार्जुन को पद्म पुरस्कार नहीं मिलने पर निराशा जतायी. उनको भारत रत्न दिये जाने की मांग की. डाॅ दमन कुमार झा ने उन्हें सत्ता की आंख में आंख मिलाकर बात करने वाला जनकवि कहा. प्रो. रमेश झा, राजीव कुमार झा, शंभु नाथ मिश्र आदि ने भी विचार रखा. संचालन करते हुए प्रवीण कुमार झा ने कहा कि बाबा कबीर की तरह अक्खड़, फक्कड़ व बेबाक थे. जीवन के अंतिम पड़ाव तक व्यवस्था के विरुद्ध लड़ते रहे. मौके पर डाॅ उदय कांत मिश्र, अमरनाथ चौधरी, हरिकिशोर चौधरी, आशीष चौधरी आदि मौजूद थे.
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