सरोद की धुन के शौकीन थे महाकवि विद्यापति से लेकर दरभंगा महाराज
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के संगीत विभागाध्यक्ष सह सरोद वादक डॉ रीता दास ने कहा कि सरोद वाद्य यंत्र की उत्पत्ति रबाब से हुई है.
दरभंगा. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के संगीत विभागाध्यक्ष सह सरोद वादक डॉ रीता दास ने कहा कि सरोद वाद्य यंत्र की उत्पत्ति रबाब से हुई है. सरोद की धुन के शौकीन महाकवि विद्यापति से लेकर दरभंगा महाराज भी थे. दरभंगा महाराज के दरबार में सरोद की प्रस्तुति नित्यप्रति होती थी. वे बुधवार को लनामिवि के पीजी संगीत एवं नाट्य विभाग में चल रहे ऑनलाइन सोदाहरण व्याख्यान शृंखला में सरोद वाद्य, वादन तकनीक एवं प्रस्तुति विषय पर बोल रहे थे. कहा कि हिन्दुस्तानी संगीत में सरोद जैसे अनेक प्रकार के तंत्र -वाद्य यंत्रों का स्थान वैदिक काल से अक्षुण्ण बना है. इस वाद्य यंत्र का आगमन भारत में अलग- अलग काल व परिवेश में हुआ. महाकवि विद्यापति रचित पदावली गुरुनानक कालीन साहित्य तथा इनसाइक्लोपीडिया ऑफ म्यूजिक में भी सरोद की विशद चर्चा मिलती है. उन्होंने हाफिज अली खान के साथ आए रबाब और सरोद का अंतर बताते हुए कहा कि रबाब से ही सरोद की उत्पत्ति हुई है. सरोद के अंग, आकार- प्रकार और दरभंगा से सरोद के गहरे रिश्ते पर भी चर्चा की. डॉ दास ने राग- वसंत मुखारी में मसी तखानी गत, झाला आदि की प्रस्तुति दी. अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. पुष्पम नारायण ने की. मौके पर डॉ लावण्या कीर्ति सिंह ””””काव्या””””, डॉ नितप्रिया प्रलय आदि मौजूद थे.
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