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Darbhanga News: तेज धूप व उमस भरी गर्मी से जनजीवन अस्त-व्यस्त

Darbhanga News: तेज धूप एवं उमस भरी गर्मी के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. वहीं जिले के किसानों के लिए परेशानी का सबक बनता जा रहा है. खेतों में दरार फट गयी है. किसान धान की फसल बचाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर रखे हैं.

Darbhanga News: बहादुरपुर. तेज धूप एवं उमस भरी गर्मी के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. वहीं जिले के किसानों के लिए परेशानी का सबक बनता जा रहा है. खेतों में दरार फट गयी है. किसान धान की फसल बचाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर रखे हैं. बारिश नहीं होने के कारण खेतों में खर-पतवार उग रहे हैं. इस परिस्थिति में किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कृषि विज्ञान केंद्र जाले के प्रक्षेत्र प्रबंधन डॉ चंदन कुमार ने बताया कि फसल में अनेक खर-पतवारों का प्रकोप होता है. इनमें घास, मोथा, पानी की बरसीम, सांवा, सांवकी, कांजी, बिलुआ कंजा, मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, झलोकिया आदि खर-पतवार पनप जाती है. ये धान की फसल को नुकसान पहुंचाती है. उन्होंने बताया कि जहां खर-पतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो, वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिए, जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खर-पतवारों की तुलना में अधिक हो. ताकि ऐसी प्रजातियां खर-पतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें नीचे दबा सके. उन्होंने बताया कि प्राय: देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाउ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते हैं. छिटकवां विधि से कतारों में बोई गई धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते हैं. उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है. अत: सीड ड्रिल, ड्रम सीडर धान को हमेशा कतारों में ही बोना लाभदायक रहता है. इससे निराई-गुड़ाई में आसानी होती है एवं कृषि यंत्र जैसे पैडीवीडर, कोनोवीडर चलाकर भी खर-पतवारों की रोकथाम की जा सकती है. सामान्यत: रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खर-पतवारों की रोकथाम की जा सकती है. धान की रोपाई के दो-तीन दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी 1-2 सेमी खेत में समान रूप से रहना चाहिए. उसके बाद पानी के स्तर को 5-10 सेमी तक समान रूप से रखने से खर-पतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है. भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा, उर्वरक देने की विधि व समय का भी फसल एवं खर-पतवारों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है. फसल व खर-पतवार दोनों ही भूमि में निहित पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. खर-पतवार नियंत्रण करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता फसल को ही मिले, सुनिश्चित किया जा सकता है. पोषक तत्वों की अनुमोदित मात्रा को ठीक समय व उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती है. असिंचित उपजाउ भूमि में जहां खर-पतवारों की समस्या अधिक होती है, वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्रा को बोआई के समय न देकर पहली निराई-गुड़ाई के बाद देना लाभदायक रहता है. नाइट्रोजन को धान की लाइनों के पास डालना चाहिए, जिससे इसका ज्यादा से ज्यादा भाग फसल को मिल सके.

इस तरह किया जा सकता है बचाव

खर-पतवारनाशी रसायनों में बिस्पाइरिबैक सोडियम (10 एससी ) 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना होता है. इसका उपयोग पौधों के दो से पांच पत्ती अवस्था में करना चाहिए. रोपाई के 20-35 दिन बाद इसका प्रयोग कर खर-पतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है. बिस्पाइरिबैक सोडियम (10 एससी) के अधिक प्रभावी होने के लिए-स्प्रे से पूर्व खेत से पानी निकाल देना चाहिए. स्प्रे करने के 48 से 72 घंटे बाद (2 से 3 दिन बाद) फिर से पानी भर देना चाहिए. पानी 5 से 6 इंच भरकर कम से कम लगभग एक सप्ताह तक रखना चाहिए. यह सभी प्रकार के धान में उगने वाले चौड़े पत्ती और संकरी पत्ती खर-पतवारों को मारने में सक्षम है.

शाकनाशी के लगातार प्रयोग करने से खर-पतवारों की हो सकती है रोकथाम

धान की फसल में मुख्यत: सभी प्रकार के खर-पतवार जैसे-घास कुल, मोथा कुल एवं चौड़ी पत्ती वाले पाये जाते हैं. इसलिए एक ही शाकनाशी का लगातार प्रयोग करते रहने से कुछ विशेष प्रकार के ही खर-पतवारों की रोकथाम हो पाती है. वहीं दूसरे प्रकार के खर-पतवारों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है. कुछ समय बाद यही दूसरी प्रकार के खर-पतवार उभर आते हैं. ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के शाकनाशियों का मिश्रण करके छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है. खर-पतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है. किसान धान के खेतों से खर-पतवारों को हाथ से या खुरपी की सहायता से निकालते हैं. लाइनों में बोई गई फसल में पैडीवीडर/कोनो वीडर चलाकर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है. सामान्यत: धान की फसल में दो निराई-गुड़ाई, पहली बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खर-पतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है. तथा फसल की पैदावार में काफी वृद्धि की जा सकती है.

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