दर्शन के क्षेत्र में उदयनाचार्य का अतुलनीय योगदान

पीजी संस्कृत विभाग में उदयनाचार्य चेयर के तत्वावधान में "उदयनाचार्य का दार्शनिक अवदान " विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.

By Prabhat Khabar News Desk | August 13, 2024 10:42 PM

दरभंगा. लनामिवि के पीजी संस्कृत विभाग में उदयनाचार्य चेयर के तत्वावधान में “उदयनाचार्य का दार्शनिक अवदान ” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पीजी संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जयप्रकाश नारायण ने कहा कि उदयनाचार्य पीठ की स्थापना कर मिथिला विश्वविद्यालय ने सराहनीय काम किया है. इस पीठ के कार्यक्रमों से महापुरुषों के ज्ञान, शिक्षा तथा दर्शन से युवा पीढ़ी न केवल अवगत होगी, बल्कि उन्हें अपने जीवन में भी अपनायेगी. उन्होंने उदयनाचार्य पर अब तक हुए शोधों, टीकाओं, पुस्तकों एवं शोध- आलेखों को पीठ द्वारा संग्रहित कर युवाओं को लाभ पहुंचाने का आग्रह किया. छात्रों से ऐसे महापुरुषों पर अधिक से अधिक शोध करने का आह्वान किया, ताकि समाज को फायदा मिल सके. अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि दर्शन के क्षेत्र में उदयनाचार्य का अतुलनीय योगदान रहा है. वे हमारे अमूल्य धरोहर एवं महान मार्गदर्शक हैं. डॉ आरएन चौरसिया ने कहा कि समस्तीपुर के करियन गांव के मूल निवासी उदयनाचार्य प्रसिद्ध नैयायिक और न्याय- वैशेषिक दर्शन के मूर्धन्य आचार्य थे. उन्होंने अपने तर्कों से ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित कर बौद्धों को परास्त किया था. न्यायकुसुमांजलि तथा आत्मतत्त्वविवेक सहित उनकी सात रचनाएं उपलब्ध है. उनकी जीवनी भविष्यपुराण में मिलती है. डॉ प्रकाश चन्द्र यादव ने कहा कि उदयनाचार्य अक्षपाद गौतम से प्रारंभ प्राचीन न्याय की परंपरा के अंतिम प्रौढ़ नैयायिक हैं. अपने प्रकाण्ड पाण्डित्य, तीक्ष्ण बुद्धि एवं प्रौढ़ तार्किकता के कारण उदयन उदयनाचार्य के नाम से विख्यात हुए. वे न्याय- परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक माने जाते हैं. डॉ रवि कुमार राम ने कहा कि उदयन की किरणावली, लक्षणावली, बोधसिद्धि, तात्पर्यपरिशुद्धि, आत्मतत्त्वविवेक, न्यायकुसुमांजलि तथा आत्मतत्त्वविवेक नमक सात कृतियां हैं. उदयनचार्य पीठ के समन्वयक डॉ विकास सिंह ने कहा कि आचार्य उदयन ने आठ प्रमुख तर्कों कार्य, आयोजन, धृति, पद, प्रत्यय, श्रुति, वाक्य और संख्या विशेष के माध्यम से ईश्वर की सत्ता का समर्थन किया. उनके अनुसार जगत का कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिए. ईश्वर निराकार, नित्य, दयालु, सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान है. वही जगत का सृष्टिकर्ता, पालक एवं संहारक है, जो जीवों को उसके कर्मानुसार फल प्रदान करता है. कहा कि उदयनाचार्य रचित न्यायकुसुमांजलि पर चेयर शीघ्र ही सात दिवसीय कार्यशाला आयोजित करने जा रहा है. धन्यवाद ज्ञापन डॉ मोना शर्मा ने किया.

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