बेतिया. कहते हैं कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.. ये चर्चित पंक्तियां थरूहट की बेटियों पर न सिर्फ सटीक बैठती हैं, बल्कि यहां के ऐतिहासिक भितिहरवा के बुनियादी विद्यालय में संचालित कस्तूरबा बालिका एवं छात्रावास में चरितार्थ होते दिखती है.
दर्जनों थारू जनजाति परिवार की छात्रायें नया इतिहास रच रहीं हैं. 60 फीसदी से भी अधिक थारू जनजाति बालिकाओं वाले इस सरकारी आवासीय विद्यालय के उपलब्धियों की चर्चा आसपास से अब दूर दराज तक में होने लगी है. भाषा,विज्ञान, गणित जैसे अपेक्षाकृत कठिन विषयों की पढ़ाई में भी तेज तर्रार इन बेटियों में मानो निपुण होने का नशा है.
थारू समाज से आने वाली वार्डेन इंदु बतातीं हैं कि महज छठे वर्ग की दामिनी,अन्नू व अर्चना जैसी छात्राएं रोज के अभ्यास के बदौलत अब 10 से 13 फुट की छलांग लगा ले रहीं हैं. विद्यालय के खेल शिक्षक सुमित पांडेय बताते हैं. प्रकृति के सुरम्य गोद में जन्म लेकर विशिष्ट थारू समाज में रची बसी इन बेटियों में गजब की स्फूर्ति, ऊर्जा संकल्प क्षमता है.
कस्तूरबा विद्यालय में कार्यरत विज्ञान शिक्षिका रीता सोनी बतातीं हैं कि खेल खेल में पढाई इनकी बच्चियों की मानों आदत बन गईं हैं. जेंडर एजुकेशन की जिला समन्वयक डॉ.इंदुत्रिपाठी गौनाहा के कस्तूरबा विद्यालय से हमें विशेष उम्मीद है. विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षक नहीं होने का जवाब यहां की बच्चियां हमारे या अन्य निरीक्षी अधिकारी के पहुंचते ही पूछतीं हैं.
अब ‘प्रथम’ की ओर से तैनात दो शिक्षिका ज्योति और सुष्मिता भी हमारी बच्चियों के साथ काफी परिश्रम करने लगीं हैं. फिर भी कस्तूरबा में नामांकित 100 बच्चियों के लिये तीन टैब पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. फिर भी बच्चियों में समन्वय और शिक्षिकाओं की तत्परता से सब कुछ सुलभ होने लगा है.
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