Delhi Lockdown: हम अक्सर अपनी खबरों में हेडलाइन के साथ फोटो लगाते हैं. आज हमने एक स्क्रीनशॉट लगाया है. यह कोई गलती नहीं है. यह चूक है. उस सिस्टम की और उस ‘दिल्ली मॉडल’ की, जिसने आपाधापी में लॉकडाउन का एलान कर डाला. उसी दिल्ली में एक युवक गौरव शर्मा मंगलवार की सुबह गुजर गया. गौरव के घरवाले पटना में रहते हैं. गौरव शर्मा का जिक्र इसलिए जरूरी है कि उसे जाना नहीं था. इस हालत में गिड़गिड़ाते हुए तो कभी नहीं. उसने जिंदगी का जश्न मनाया था. हर उस चीज को हासिल किया, जिसे हमने साथ में बैठकर प्लानिंग की. आज गौरव के गुजरने की खबर आई. कोरोना ने एक खूबसूरत इंसान को छीन लिया. गौरव जीना चाहता था. उसने फेसबुक पोस्ट में इसका जिक्र किया था. हम सभी उसके लौटने का इंतजार कर रहे थे. गौरव नहीं आया. उसके गुजरने की बुरी खबर आई.
दिल्ली में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने 26 अप्रैल तक के लिए लॉकडाउन का एलान कर डाला है. इसी बीच मंगलवार को सीएम अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता कोरोना पॉजिटिव हो गईं और सीएम साहब खुद को आइसोलेशन में लेकर चले गए. ब्लेम-गेम की राजनीति में उलझी दिल्ली सरकार ने ना तो चिकित्सा की व्यवस्था की और ना ही घर लौटते प्रवासियों के हुजूम का भरोसा ही जीत सकी. दोस्त गौरव शर्मा सुन्न और सड़ चुके सिस्टम के चक्कर में गुजर गया. दिल्ली में कमोबेश हालात बदतर होते जा रहे हैं. कोरोना पीड़ित हर सांस की एक-एक आस के लिए दर-ब-दर भटक रहे हैं. कई अपनों और अनजानों ने फेसबुक से लेकर ट्विटर पर मदद मांगी. कई लोगों को मदद मिली, कई मदद को मोहताज भी दिखे. जिनको मदद नहीं मिली है, उनके दुख को देखकर कलेजा कांप जाता है.
दिल्ली में अजीब स्थिति है. सड़कों पर लॉकडाउन के बाद सन्नाटा पसरा है. आनंद विहार बस स्टैंड, सराय काले खां बस अड्डे, हजरत निजामुद्दीन और नई दिल्ली स्टेशन पर भारी भीड़ है. कोरोना संकट की फिक्र नहीं है. लोगों को घर लौट जाना है. पिछले साल का खौफनाक मंजर आंखों के सामने तैर रहा है. सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म को खोलिए तो प्रवासियों की तसवीर और मदद मांगते लोगों की पोस्ट और ट्वीट आंखों के सामने तैर जाते हैं. एक साल से हमने बहुत कुछ झेला है. हर दिन कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. कुछ दिनों से रोजाना दो लाख से ज्यादा केस सामने आ रहे हैं. सरकार कह रही है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए पूरी तैयारी है. जिनके हाथ में सिस्टम की चाबी है, उनके सीने पर ताला लटका है. आम जनता बेबस और लाचार है. इसी बेबसी और लाचारी में गौरव हमें छोड़कर चला गया.
गौरव शर्मा के घर का नाम सोनू था. शुरू से ही उसे स्पोर्ट्स और पढ़ाई का शौक था. उसने बड़ा होकर इंजीनियर बनने का सपना देखा था. कुछ सालों से दिल्ली में रहकर कोचिंग क्लासेज लेता था. उसे बुलेट का शौक था. उसने नई बुलेट खरीदी भी थी. दिल्ली में रहते हुए उसकी बुलेट पर मैंने सवारी भी की और चलाई भी. मंगलवार की सुबह करीब सात बजे गौरव शर्मा गुजर गया. कोरोना संकट में उसने जीने की काफी कोशिश तो की थी, उसने खूब मेहनत किया था. उसने हॉस्पीटल से इलाज की गुहार लगाई. मैं खुद से पूछ रहा हूं किसी ने उसकी आवाज क्यों नहीं सुनी? मैं भी क्यों नहीं कुछ कर सका? क्या प्रवासियों के दर्द का मोल सिस्टम को भी नहीं पता है? क्या इसी अच्छे दिन का हमें भरोसा दिया गया था?
Posted : Abhishek.