Dengue की आज तक नहीं बनी कोई दवा, कोरोना की तरह होता है सिम्टोमेटिक इलाज

Bihar में बढ़ते डेंगू संक्रमण के बीच मेडिसिन अपडेट कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में IGIMS के निदेशक व नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बिभूति प्रसन्न सिन्हा ने कहा कि डेंगू से घबराने की जरूर नहीं है. सतर्क रहकर ही इसे बचाव किया जा सकता है. डेंगू फैलाने वाले मच्छर से भी बचने की जरूरत है

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2022 7:35 PM

Bihar में बढ़ते डेंगू संक्रमण के बीच मेडिसिन अपडेट कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में IGIMS के निदेशक व नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बिभूति प्रसन्न सिन्हा ने कहा कि डेंगू से घबराने की जरूर नहीं है. सतर्क रहकर ही इसे बचाव किया जा सकता है. डेंगू फैलाने वाले मच्छर से भी बचने की जरूरत है. ऐसे में डेंगू मच्छर को फैलने से रोके. डेंगू का मच्छर साफ पानी से पनपता है. लोगों को अपने घरों तथा आस-पास के समय पर पानी खड़ा नहीं होने देना चाहिए. अगर किसी को बुखार होता है और डेंगू का शक होता है तो लोग तुरंत अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवाएं. अभी सावधानियां बरतने की जरूरत है.

15 से 20 हजार प्लेटलेट्स हो तभी अस्पताल में भर्ती की जरूरत

IGIMS के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने कहा कि डेंगू के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का रोल नहीं होता. इसका कोरोना की तरह ही सिम्टोमेटिक इलाज होता है. वैसे साधारण डेंगू खुद भी ठीक हो जाता है और उसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है. पर कुछ गंभीर लक्षणों पर नजर रखने की जरूरत होती है. यदि डेंगू पीड़ित मरीज का पेट फूलने लगे, उलटी होने, मसूढ़े या फिर शौच से खून आने लगे, बदन में दाने (रैश) निकलने लगे तो सतर्क हो जाना चाहिए और तुरंत चिकित्सक से मिलकर जांच और इलाज शुरू कर देना चाहिए. वहीं अगर प्लेटलेट्स 15 से 20 हजार के नीचे आता है या फिर चक्कर व शरीर के किसी अंग से खून आ रहा हो तो अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है. इसे वार्निंग साइन माना जाता है.

डेंगू का शॉक सिंड्रोम है खतरनाक

भुनेश्वर एम्स के निदेशक डॉ आशुतोष विश्वास ने कहा कि शॉक सिंड्रोम में डेंगू का मरीज बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद त्वचा ठंडी महसूस होती है. मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है. नाड़ी कभी तेज तो कभी धीरे चलती है. रक्तचाप एकदम कम हो जाता है. इससे मरीज शॉक में चला जाता है और महत्वपूर्ण अंगों में रक्त संचार कम हो जाता है. इसमें पेशाब भी कम आता है. उन्होंने कहा कि इसमें प्लेटलेट्स कम होने की संभावना रहती है. यदि प्लेटलेट्स काउंट कम हो जाये तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है.

10 से 20 प्रतिशत मरीजों को हो सकता है गठिया

डेंगू, चिकनगुनिया रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए जिम्मेदार ऋषिकेस एम्स से आये डॉ नीरज कुमार व डॉ अजय कुमार ने डायबिटीज के साथ-साथ शरीर में होने वाले विभिन्न रोगों के बारे में बताया. डॉ नीरज ने कहा कि मच्छरों के काटने से होने वाले घातक रोगों डेंगू और चिकनगुनिया के करीब 10 से 20 प्रतिशत मरीज गठिया के शिकार हो सकते हैं. यह बात एक अध्ययन में भी सामने चुकी है. उन्होंने कहा कि अगर डेंगू और चिकनगुनिया के ठीक होने के कुछ सप्ताह बाद रूमेटाइड के लक्षण प्रकट हों तो संबंधित डाक्टर से परामर्श करना चाहिए. इस मौके पर IGIMS के पूर्व निदेशक डॉ एनआर विश्वास, हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बीपी सिंह, डॉ साकेत कुमार, भागलपुर से आये डॉ डीपी सिंह, दिल्ली एम्स के डॉ उमा, डॉ एसएस चटर्जी, डॉ सुधीर कुमार समेत काफी संख्या में डॉक्टर उपस्थित थे.

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