Loading election data...

नहीं मान रहे किसान, प्रतिबंध के बावजूद बिहार में धड़ल्ले से खेतों में जल रही है पराली

खेतों में पराली जलाने पर सरकार द्वारा लगाये गये रोक के बावजूद किसान धड़ल्ले से खेतों में पराली जला रहे हैं. हालांकि लगातार विभागीय स्तर से किसानों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | December 14, 2020 11:14 AM

अंबा. खेतों में पराली जलाने पर सरकार द्वारा लगाये गये रोक के बावजूद किसान धड़ल्ले से खेतों में पराली जला रहे हैं. हालांकि लगातार विभागीय स्तर से किसानों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा हैं.

कृषि विशेषज्ञ गांव में किसान चौपाल लगाकर पराली जलाने से हो रहे नुकसान के बारे में किसानों को अवगत करा रहे हैं. कृषि विशेषज्ञों की माने तो खेतों में पराली जलाने से जहां एक ओर पर्यावरण प्रदूषित होता है ,वहीं दूसरी ओर किसानों के मित्र कीट जल कर नष्ट हो जाते हैं .

इसके साथ ही खेत का ऊपरी परत जल जाता है, जिससे उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है. इससे सीधा नुकसान किसानों को है, पर नफा नुकसान देखे बगैर किसान पराली जलाना ही उचित समझ रहे हैं.

हालांकि विशेषज्ञों द्वारा चलाये जा रहे जागरूकता अभियान से कई किसान इसके प्रति सजग हुए हैं व पराली जमा कर पशु चारे के लिए एकत्रित करने में लगे हैं, पर अधिकतर किसान आज भी पुआल जमा करने के बजाय खेतों में जलाना ही बेहतर समझ रहे हैं.

किसान बताते हैं अपनी मजबूरी

खेतों में पराली जलाने के पीछे किसान अपनी मजबूरी बताते हैं. नाम नहीं छापने के शर्त पर किसानों ने बताया कि कृषि कार्य के लिए मजदूर के अभाव में हार्वेस्टर से धान की कटाई करानी पड़ती है.

विभाग द्वारा भी कृषि कार्य में यांत्रीकरण का प्रयोग अधिक करने पर बल दिया जाता है. हार्वेस्टर से धान की कटाई करने के बाद पुआल खेतों में ही रह जाता है, जिसे जमा करने के लिए मजदूर नहीं मिलते हैं.

रबी फसल की बुआई करने के लिए खेतों से पुआल को हटाना या फिर उसे जलाना जरूरी है. किसान बताते हैं कि मजदूरों की कमी के कारण अब कृषि कार्य करना संभव नहीं रह गया है.

खर्च बढ़ने के बाद हर वर्ष घटता जा रहा है धान का मूल्य : किसान बताते हैं कि कृषि कार्य में बचत नहीं होने के कारण मजदूर दूसरे कामों को करने परदेश चले जाते हैं. सरकार किसानों को उनके उत्पादन का सही मूल्य देने का प्रयास नहीं कर रही है.

पिछले चार वर्षों से जहां अन्य सभी वस्तुओं के मूल्य बढ रहे हैं, वहीं धान एवं गेहूं का मूल्य घटता जा रहा है. डीजल एवं खाद की महंगाई से खेती में किसान के साथ-साथ कृषि कार्य करने वाले मजदूर इससे दूर भाग रहे हैं.

किसानों के अनुसार वर्ष 2017 में सोनम धान का मूल्य 2000 रुपये प्रति क्विंटल था. इसके बाद 2018 में 1900 रुपए प्रति क्विंटल, पिछले वर्ष 2019 में 1800 रुपए प्रति क्विंटल था तो इस वर्ष 1600 रुपए प्रति क्विंटल बाजार में सोनम धान बेचा जा रहा है.

हालांकि धान के मूल्य में अब धीरे-धीरे तेजी आ रही है. सवाल यह है कि जब किसानों के पास से धान बिक जाएगा, तो फिर तेजी आने से किसानों को कोई लाभ नहीं होगा.

प्राथमिकी दर्ज कराने का है प्रावधान

खेतों में पराली जलाने को लेकर कृषि विभाग द्वारा किसानों पर कार्रवाई किये जाने का भी प्रावधान बनाया गया है. ऐसे किसानों को सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न योजनाओं से वंचित करने तथा उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने का भी प्रावधान है.

पिछले वर्ष प्रखंड के इक्के-दुक्के किसानों पर कार्रवाई भी की गयी थी. इससे किसानों के मन में डर भी पैदा हुआ, पर बाद में विभाग द्वारा किसी तरह की कार्रवाई नहीं किए जाने से किसान अपनी हरकत से बाज नहीं आना चाह रहे हैं.

Posted by Ashish Jha

Next Article

Exit mobile version