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राजगीर मलमास मेले में कल से लगेगी आस्था की डुबकी, जानें क्यों लगता है मेला और क्या है इसकी मान्यता

18 जुलाई से शुरू हो रहे मलमास मेला के लिए राजगीर सज-धज कर तैयार हो चुका है. इसके लिए प्रशासन की तरफ से भी सारी तैयारियां कर ली गई है. राजगीर में इस मेले की शुरुआत कब से हुई और यह मेला क्यों लगाया जाता है, इसके पीछे की क्या मान्यता है. पढ़िए इस रिपोर्ट में...

देश-दुनिया से मलमास मेला में आने वाले तीर्थयात्रियों, श्रद्धालुओं और सैलानियों के स्वागत के लिए राजगीर सजधज कर पूरी तरह से तैयार है. मंगलवार 18 जुलाई से शुरू होने वाले राजकीय मलमास मेला की सभी आवश्यक तैयारियां शासन और प्रशासन द्वारा पूरा कर ली गयी है. यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों के आवासन, सुरक्षा, स्वास्थ्य, पीने के लिए गंगाजल व्यवस्था सहित तरह-तरह की मुकम्मल व्यवस्था की गई है. इसके अलावा तीर्थयात्रियों, श्रद्धालुओं और सैलानियों के मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था इस राजकीय मलमास मेला में की गयी है. इस सांस्कृतिक और अध्यात्मिक मेला में नेपाल मारिशस के सनातन धर्मावलंबी बड़ी संख्या में आते हैं.

सुरक्षा की व्यापक व्यवस्था

मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी राजगीर और इससे जुड़ी सड़कों पर सुरक्षा के साथ-साथ पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था की गई है. जिला प्रशासन द्वारा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के तहत चप्पे-चप्पे में दण्डाधिकारी, पुलिस पदाधिकारी और पुलिस बल को प्रतिनियुक्त किया गया है. इसके अलावा सादे लिबास में भी पुलिस पदाधिकारी और जवान तैनात किये गये हैं. राजगीर में बड़े पैमाने पर आवासन की व्यवस्था की गयी है. एक साथ यहां छह हजार तीर्थयात्री अलग अलग टेंट सिटी और आश्रय पंडाल में आवासन कर सकते हैं.

कुंभ मेले के पैटर्न पर राजगीर मलमास मेले में की गई व्यवस्था

जिला प्रशासन द्वारा कुंभ मेलों के पैटर्न पर राजगीर के राजकीय मलमास मेला की व्यवस्था करने की कोशिश की गयी है. तीर्थयात्रियों के पड़ाव स्थल पर पर्याप्त संख्या में शौचालय, स्नानागार, सुरक्षा , स्वास्थ्य और रोशनी की व्यवस्था की गयी है. मेला क्षेत्र में तीर्थयात्रियों और सैलानियों को आवागमन में कोई असुविधा न हो इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा मेला क्षेत्र में वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है. केवल प्रशासनिक वाहनों और अनुमति प्राप्त वाहनों को ही मेला क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत होगी.

नालंदा युवक सेवा समिति के स्वयं सेवक करेंगे भीड़ नियंत्रण

मलमास मेला के दौरान सप्तधारा, ब्रह्मकुण्ड , सरस्वती कुण्ड में स्नान करने वाले तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है उसे नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में पुरुष और महिला पुलिस पदाधिकारी दंडाधिकारी के साथ-साथ महिला और पुरुष बल तैनात किए जाते हैं .उनके सहयोग के लिए नालंदा युवक सेवा समिति के स्वयंसेवक भी बड़ी संख्या में तैनात किए जाते हैं जो स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ और सैलाब को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा वैतरणी नदी घाट और सूर्य कुण्ड आदि स्थलों पर भीड़ प्रबंधन के लिए जिला प्रशासन द्वारा एनसीसी कैडेट तथा स्काउट एंड गाइड साथ प्रशिक्षित आपदा मित्रों को तैनात किया गया है.

ध्वजारोहण साथ शुरू होगा पुरुषोत्तम मास मेला

मंगलवार की सुबह ध्वजारोहण कार्यक्रम सनातन परंपरा से संपन्न होगा. सिमरिया कालीधाम के पीठाधीश्वर स्वामी चिदात्मन जी महाराज उर्फ फलाहारी बाबा ध्वजारोहण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनाए गए हैं. वैदिक मंत्रोच्चारण और शंखनाद के साथ ब्रह्मकुंड क्षेत्र में ध्वज स्थल पर ध्वजारोहण किया जाएगा. इसके पहले सप्तधारा कुंड में ब्रह्मकुंड की पूजा-अर्चना और मंगल आरती की जाएगी. ध्वजारोहण बाद साधु – संत- महात्मा सप्तधारा और ब्रह्मकुंड में स्नान करेंगे. उसके स्नान साथ देश – दुनिया से आए श्रद्धालु भी मलमास मेला स्नान करने लगेंगे.

क्या होता है मलमास

ज्योतिषों की गणना के मुताबिक हर तीन वर्ष के बाद पंचांग में एक माह बढ़ जाता है. ऐसा हिन्दू पंचांग के लिए तारीख की गणना की विधि की वजह से होता है. यह गणना दो विधि से की जाती है. जिसके तहत प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. ऐसे में दोनों चंद्र और सूर्य वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर आ जाता है. जो तीन वर्ष में 33 दिन यानि की लगभग एक महीने का हो जाता है. इसी एक अतिरिक्त महीने को मलमास कहा जाता है.

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राजगीर में कैसे उत्पन्न हुए 22 कुंड

धार्मिक ग्रंथ वायु पुराण के मुताबिक भगवान ब्रह्मा के पौत्र राजा बसु ने राजगीर में मलमास मेला के दौरान एक यज्ञ करवाया था. इस यज्ञ के लिए उन्होंने सभी 33 करोड़ देवी देवाओं को न्योता भेजा. यज्ञ के लिए जब देवी-देवता आए तो राजगीर के एक मात्र कुंड में स्नान करने में उन्हें परेशानी होने लगी. तब ब्रह्मा जी ने राजगीर में 22 अग्निकुंडों के साथ 52 जल घाराओं का निर्माण कराया.

ये हैं राजगीर के 22 कुंड

ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, व्यास, अनंत, मार्केण्डेय, गंगा-यमुना, काशी, सूर्य, चन्द्रमा, सीता, राम-लक्ष्मण, गणेश, अहिल्या, नानक, मखदुम, सरस्वती, अग्निधारा, गोदावरी, वैतरणी, दुखहरनी, भरत और शालीग्राम कुंड। जिसमें ब्रह्मकुंड का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है।

कहां से आता है कुंड में पानी

बताया जाता है कि इन सभी कुंड में पानी वैभारगिरी पर्वत पर सप्तकर्णी गुफाओं से आता है. पर्वत पर एक भेलवाडोव तालाब है जिससे होते हुए पानी कुंड में पहुंचता है. इस पर्वत में कई तरह के केमिकल्स जैसे सोडियम, गंधक, सल्फर मौजूद हैं और इसी वजह से जब पानी कुंड में आता है तो गर्म होता है.

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मलमास मेला के दौरान राजगीर में क्यों नहीं दिखता कौवे

वायु पुराण के मुताबिक यज्ञ में शामिल होने के लिए जब सभी 33 करोड़ देवी देवताओं को आमंत्रण भेजा गया था. लेकिन राजा बसु भूलवश काग महाराज को न्योता देना भूल गये थे. इसलिए काग महाराज यज्ञ में शामिल नहीं हुए थे और इसी कारण से मलमास मेले के दौरान राजगीर के आसपास काग महाराज कहीं दिखायी नहीं देते हैं

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